________________ // 216 // // 217 // // 218 // // 219 // // 220 // // 221 // अणुसिट्ठा य बहुविहं, मिच्छद्दिट्ठी य जे नरा अहमा / बद्धनिकाइयकम्मा, सुणंति धम्मं न य करंति पंचव उज्झिऊणं, पंचेव य रक्खिऊण भावेणं / कम्मरयविप्पमुक्का, सिद्धिगइमणुत्तरं पत्ता नाणे दंसणचरणे, तवसंजमसमिइगुत्तिपच्छित्ते / दमस्सग्गववाए, दव्वाइअभिग्गहे चेव सदहणायरणाए निच्चं उज्जुत्त एसणाइ ठिओ। तस्स भवोअहितरणं, पव्वज्जाए य (स)म्मं तु जे घरसरणपसत्ता, छक्कायरिऊ सकिंचणा अजया / नवरं मुत्तूण घरं, घरसंकमणं कयं तेहिं उस्सुत्तमायरंतो, बंधइ कम्मं सुचिक्कणं जीवो। संसारं च पवड्डइ, मायामोसं च कुव्वइ य जइ गिण्हइ वयलोवो, अहव न गिण्हइ सरीखुच्छेओ। पासत्थसंगमो वि य, वयलोवो तो वरमसंगो आलावो संवासो, वीसंभो संथवो पसंगो अ। . हीणायारेहिं समं, सव्वजिणिदेहिं पडिकुट्ठो अनुन्नजंपिएहिं हसिउद्धसिएहिं खिप्पमाणो अ। पासत्थमज्झयारे, बला वि जइ वाउलीहोइ . लोए वि कुसंसग्गीपियं जणं दुनियच्छमइवसणं / निदइ निरुज्जमं पियकुसीलजणमेव साहुजणो निच्चं संकिय भीओ गम्मो सव्वस्स खलियचारित्तो / साहुजणस्स अवमओ, मओ वि पुण दुग्गइं जाइ गिरिसुअपुप्फसुआणं, सुविहिय ! आहरणकारणविहन्नु / वज्जेज्ज सीलविगले उज्जुयसीले हविज्ज जई // 222 // // 223 // // 224 // // 225 // // 226 // // 227 // - 19