________________ सम्मत्तसुद्धिसुरवल्लिसुलद्धिधन्नो, आया सुही जह य विक्कम-वज्जकण्णो / मिच्छत्तमोहपिसुघायपवड्डमाणो, आया दुही जह तिविक्कमगाभिहाणो दाणं तवोवहाणं धम्माणुट्ठाण नाण झाणं च / पोसह-पडिमाठाणं विणु सम्मत्तं तमण्णाणं // 25 // मूलं सव्वसुहाणं सव्वगुणाणं निहाण सिवजाणं / पावियसग्गविमाणं, सम्मत्तं धरसु अनियाणं // 26 // कारणरहियं कज्जं न होइ इय जाणिऊण रे जीव / धम्मो सव्वसुहाणं बीयमबीए कहं रमसि ? // 27 // जो पुव्वजम्मकयरम्मसुधम्मकम्मो, आया भवे धणसमिद्धकुमारसम्मो संगामसूरनिवबोहणवुत्तधम्मो, सो होइ सुत्तसुरलोयसुहाण मम्मो // 28 गुणओ समसुहभुत्ती सव्वपयत्थाण होइ पडिवत्ती।। गुण[ओ] लोए कित्ती, कायव्वा तेण गुणसित्ती // 29 // जह उवसमरस खंती गुणसेणणिवस्स सव्वगुणमित्ती / मणवयणकायगुत्ती, कायव्वा तेण गुणवित्ती. // 30 // आया सुही अयलजंतुसुहप्पयाणो, सीहो जहा अमरगुत्तचरित्तनाणो / आया सुही भवइ वा परमप्पझाणो, दिटुंतओ अमरगुत्तमुर्णिदझाणो जोगी जए सकहमित्थ न जो सजोगं, संजोइऊण जगजंतुविचित्तरूवं चित्ते वियारयइ सुत्तवियारपुण्णो, सोऊण जो सिहिकुमारसमं न भिन्नो दव्वेण खित्तेण य कालएणं, भावेण एगिदियपंचयाणं / तहा सरूवं विगलिंदियाणं कारुण्णओ पस्स विडंबणं च // 33 // तिरिक्खपंचिंदियमाणुसाणं, तहा सरूवं च विचित्तयाओ। देवाण वा पस्स विचित्तरूवं, सज्झायकारुण्णगओ सुजीव ! 34 के वि कामत्थमुव्विग्गा के वि धम्मत्थमुज्जया / / आगंतूण गुरुं के वि वंदंति य थुणंति य // 35 // . 251