________________ // 192 // // 193 // // 194 // // 195 // // 196 // // 197 // निग्गंतूण घराओ, न कओ धम्मो मए जिणक्खाओ। इड्ढिरससायगुरुयत्तणेण न य चेइओ अप्पा ओसन्नविहारेणं, हा जइ झीणम्मि आउए सव्वे / किं काहामि अहन्नो संपइ सोयामि अप्पाणं हा जीव ! पाव भमिहिसि, जाईजोणीसयाई बहुयाइं / भवसयसहस्सदुलहं पि जिणमयं एरिसं लर्छ पावो पमायवसओ, जीवो संसारकज्जमुज्जुत्तो। दुक्खेहिं न निविण्णो सुक्खेहिं न चेव परितुट्ठो परितप्पिएण तणुओ, साहारो जइ घणं न उज्जमइ / सेणियराया तं तह, परितप्पंतो गओ नरयं जीवेण जाणि विसज्जियाणि जाईसएसु देहाणि / थोवेहि, तओ सयलं पि तिहुयणं हुज्ज पडिहत्थं नहदंतमंसकेसट्ठिएसु जीवेण विप्पमुक्केसु। . तेसु वि हविज्ज कइलासमेरुगिरिसन्निभा कूडा. हिमवंतमलयमंदरदीवोदहिधरणिसरिसरासीओ। अहिअयरो आहारो, छुहिएणाहारिओ होज्जा जंणेण जलं पीयं, घम्मायवजगडिएण तं पि इहं / सव्वेसु वि अगडतलायनईसमुद्देसु न वि हुज्जा पीयं थणयच्छीरं, सागरसलिलाओ होज्ज बहुआयरं / संसारम्मि अणंते, माऊणं अन्नमन्त्राणं पत्ता य कामभोगा; कालमणंतं इहं सउवभोगा। अप्पुव्वं पिव मन्नई, तह वि य जीवो मणे सुक्खं जाणइ अ जहा भोगिड्डिसंपया सव्वमेव धम्मफलं / तह वि दढमूढहियओ, पावे कम्मे जणो रमई // 198 // // 199 // // 200 // // 201 // // 202 // // 203 // 10