________________ कि पि कहिं पि कयाई, एगे लद्धीहि केहि वि निभेहिं / पत्तेअबुद्धलाभा, हवंति अच्छेरयब्भूया // 180 // निहिसंपत्तमहन्नो, पत्थिंतो जह जणो निरुत्तप्पो। इह नासइ तह पत्तेअबुद्धलद्धिं (च्छिं) पडिच्छंतो // 181 // सोऊण गई सुकुमालिए तह ससगभसगभइणीए। ताव न वीससियव्वं, सेयट्ठी धम्मिओ जाव // 182 // खरकरहतुरयवसहा, मत्तगइंदा वि नाम दम्मति / इक्को नवरि न दम्मइ, निरंकुसो अप्पणो अप्पा // 183 // वरं मे अप्पा दंतो, संजमेण तवेण य। . माऽहं परेहिं दम्मंतो, बंधणेहिं वहेहि अ // 184 // अप्पा चेव दमेयव्वो, अप्पा हु खलु दुद्दमो। अप्पा दंतो सुही होइ, अस्सिं लोए परस्थ य // 185 // निच्चं दोससहगओ जीवो अविरहियमसुहपरिणामो। नवरं दिन्ने पसरे, तो देइ पमायमयरेसु // 186 // अच्चिय वंदिय पूइअ, सक्कारिय पणमिओ महग्घविओ। तं तह करेइ जीवो, पाडेइ जहप्पणो ठाणं // 187 // सीलव्वयाइं जो बहुफलाइँ हंतूण सुक्खमहिलसइ / धिइदुब्बलो तवस्सी, कोडीए कागिणि किणई / // 188 // जीवो जहामणसियं, हियइच्छियपत्थिएहि सुक्खेहि। तोसेऊण न तीरई, जावज्जीवेण सव्वेण // 189 // सुमिणंतराणुभूयं, सुक्खं समइच्छियं जहा नत्थि। . एवमिमं पि अईयं, सुक्खं सुमिणोवमं होई // 190 // पुरनिद्धमणे जक्खो, महुरामंगू तहेव सुयनिहसो। बोहेई सुविहियजणं, विसूरइ बहुं च हियएण // 191 // 11