________________ इच्चाइ जओ णज्जइ, सवित्थरं तं सरेह सिद्धतं / सविसेसं सरह गुरुं, जस्स पसाया भवे सो वि // 4 // गुरुसेवा चेव फुडं, आयारंगस्स पढमसुत्तम्मि / इय नाउं निअगुरुसे-वणम्मि कह सीअसि सकण्ण ? // 5 // ता सोम ! इमं जाणिअ, गुरुणो आराहणं अइगटुिं / इहपरलोअसिरीणं, कारणमिणमो विआण तुमं // 6 // रुट्ठस्स तिहुअणस्स वि, दुग्गइगमणं न होइ ते जीव ! / तुढे वि तिहुअणे लहसि, नेव कइआ वि सुगइपहं // 7 // जइ ते रुट्ठो अप्पा, तो तं दुग्गइपहं धुवं नेइ / अह तुट्ठो सो कहमवि, परमपयं पि हु सुहं नेइ // 8 // जइ तुह गुणरागाओ, सं१णइ नमंसई इहं लोओ / न य तुझणुरागाओ, कह तम्मि तुमं वहसि रागं ? // 9 // जइ वि न कीरइ रोसो, कह रागो तत्थ कीरए जीव ? / जो लेइ तुह गुणे पर-गुणिक्कबद्धायरो धिट्ठो .. // 10 // जो गिण्हइ तुह दोसे, दुहजणए दोसगहणतल्लिच्छो / जह कुणसि नेव रागं, कह रोसो जुज्जए तत्थ ? // 11 // पिक्खसि नगे बलंतं, न पिच्छसे पायहिटुओ मूढ ! / जं सिक्खवसि परे, नेव कह वि कइआ वि अप्पाणं // 12 // का नरगणणा तेर्सि ?, वियक्खणा जे उं अन्नसिक्खाए / जे निअसिक्खादक्खा, नरगणणा तेसि पुरिसाणं // 13 // जइ परगुणगहणेण वि, गुणवंतो होसि इत्तिएणावि / ता किं न करेसि तुमं, परगुणगहणं पि रे पाव ! ? // 14 // जिणवयणअंजणेणं, मच्छरतिमिराई. किं न अवणेसि ? / अज्ज वि जम्मि वि तम्मि वि, मच्छरतिमिरंधलो भमिसि ? 15 . 245