________________ // 443 // अप्पडि-दुप्पडिलेहप्पमज्ज सिज्जाइ वज्जई इत्थं / सम्मं च अणणुपालण-महोराईसु सव्वेसु // 440 // अन्नाइणं सुद्धाण, कप्पंणिज्जाण देसकालजुयं / दाणं जईणमुचियं, चउत्थं सिक्खावयं बिति // 441 // सच्चितनिक्खवणयं, वज्जइ सच्चित्तपिहिणयं चेव / कालाइक्कम परववएसं, मच्छरियं चेह // 442 // इय दंसणमूलाई, बारस वि वयाई सुगुरुपयमूले। गिह्रिय परिपालंता, नियमा सुस्सावगा हुंति एयाण निरइयाराण, सुदड्ढसम्मत्तमूलपेढाणं / परिपालणम्मि दिट्ठो, दिलुतो चेडगनरिंदो // 444 // मिच्छद्दिवी सुरासुर-नरवइपमुहेहिं पाणहरणे वि। . खोभेउं न समत्था, निग्गंथाओ पवयणाओ // 445 // पज्जुसणे चउम्मासे, पव्वदिणट्ठाहियासु सविसेसं.। जिणपूयाइ पयट्टा, विसिट्ठतवबंभचेरड्ढा चेइय-जइ-साहम्मिय-कज्जेसु व जुज्जइ य जं मित्तं / तं मित्तं चिय अत्थं, सेसमणत्थं ति मनंता || 447 // सइ सामत्थे सम्मं, रक्खंता चेईयाण दव्वाई। साहारणदविणेणं, सत्त वि.खित्ताइं पीणंता .. . // 448 // रहजत्त-तित्थजत्ता-पमुहेहिं पवयणं पभाविता। इय जे वटुंति गिही, न तेसि निव्वुइपहो दुलहो // 449 // जं पुण पाणिवहाईण, तिविहं तिविहेण सव्वसंवरणं / सा होइ सव्वविरई, विरई भव-भमण दुक्खाणं // 450 // पंच य महव्वयाई, समिइओ पंच तिन्नि गुत्तीओ। खंतिप्पमुहा य गुणा, इय जइधम्मो समासेण // 451 // 203 // 446 //