________________ // 8 // // 9 // // 10 // // 11 // // 12 // // 13 // पत्ते य तम्मि खित्ताइ-सयलसामग्गिसंगए कह वि। अत्तहियम्मि पयत्तो, सइ जुत्तो बुद्धिमंताणं सुविसुद्धं सम्मत्तं-१, उत्तमगुणसंगहो-२ विरइजुयलं-३ / पाएण हियत्थीणं, परमत्थहियाणि एयाणि मिच्छत्तपडलसंछन-दंसणा वत्थुतत्तमनियंता / अमुणंता हियमहियं, निवडंति भवावडे जीवा ता मिच्छपडिच्छंद, हत्थं उच्छिंदिऊण मिच्छत्तं / पयडियजिणुत्ततत्तं, भो भव्वा ! भयह सम्मत्तं दढधम्मरायरत्ता, कम्मेसु अनिदिएसु य पसत्ता / वसणेसु असंखुद्धा, कुतित्थिरिद्धीसु वि अमुद्धा अखुद्दा य अकिविणा, अदुराराहा अदीणवित्ती य / हियपियमियभासिल्ला, संतोसपरा अमाइल्ला धम्मपडिकूलकुलगण-जणवयनिवजणयसयणअक्खोभा / जणेसम्मया य पुरिसा, सम्मत्तऽहिगारिणो हुंति सव्वन्नुपणीएसुं तत्तेसु रुई हविज्ज सम्मत्तं / मिच्छत्तहेउविरहा, सुहायपरिणामरूवं तं धम्मदुमस्स मूलं, सम्मत्तं सुगइनयरवरदारं / अयसुदढपइट्टाणं, जिणपबयणजाणवत्तस्स विणयाइगुणगणाणं, आहारो उव्वरव्व सस्साणं / अमयस्स भायणं नाण-चरणरयणाण किंच निही * पम्हसइ मुक्खमग्गं, ताव च्चिय निबिडमोहतिमिरोहो। सम्मत्तचित्तभाणू, न जा पयत्थे पयासेइ विच्छिनो वि हु तिन्नो, भवनवो गोपयं व नणु तेहिं / आरूढा दढबंधे, जे दंसणजाणवत्तम्मि // 14 // // 15 // // 16 // // 17 // // 18 // . // 19 // . 167