________________ तत्थुववज्जइ देवो कोमलवरदेवदूसअंतरिए। . अंतोमुत्तमज्झे संपुनो जायए एसो // 351 // अह सो उज्जोयंतो तेएण दिसाओ पवररूवधरो / सुत्तविउद्ध व्व खणेण उट्ठिओ नियइ पासाइं // 352 // सामाणियसुरपमुहो तत्तो सव्वो वि परियणो तस्स। आगंतुं अभिणंदइ जयविजएणं कयंजलिओ // 353 // . इंदसमा देविड्ढी देवाणुपिएहिं पाविया एसा। अणु/जंतु जहिच्छं समुवणयं निययपुन्नेहि // 354 // अह सो विम्हियहियओ चिंतइ दाणं तवं च सीलं वा। ... किं पुव्वभवे विहियं मए इमा जेण सुररिद्धी ? // 355 // इय उवउत्तो पेच्छइ पुव्वभवं तो इमं विचितेइ। किं एत्थ मज्ज किच्चं पढमं? ता परियणी भणइ // 356 // अट्ठसयं पडिमाणं सिद्धाययणे तहेव सगहाओ / कयअभिसेया पूएह सामि ! किच्चाणिमं पढमं // 357 / / अह सो सयणिज्जाओ उटुइ परिहेइ देवदूसजुयं / मंगलतूररवेहिं पढंतसुरवंदवंदेहि // 358 // हरयम्मि समागच्छइ करेइ जलमज्जणं तओ विसइ।। अभिसेयसभाए अणुपयाहिणं पुव्वदारेणं // 359 // अह आभिओगियसुरा साहाविय तह विउब्वियं चेव / मणिमयकलसाईयं भिंगाराई य उवगरणं // 360 // घेत्तूण जंति खीरोयहिम्मि तह पुक्खरोयजलहिम्मि। दोसु वि गिण्हंति जलाई तह य वरपुंडरीयाई मागहवरदामपभासतित्थतोयाई मट्टियं च तओ।' समयक्खेत्ते भरहाइगंगसिंधूण सरियाणं // 362 // // 361 // 118