________________ // 6 // * // 7 // // 8 // // 9 // ... // 10 // // 11 // सिज्जं असोहयंतो अचरित्ती इत्थ संसओ नत्थि। चारित्तम्मि असंते सव्वा दिक्खा निरस्थिआ / वत्थं असोहयंतो अचरित्ती इत्थ संसओ नत्थि। चारित्तम्मि असंते सव्वा दिक्खा निरस्थिआ पत्तं असोहयंतो अचरित्ती इत्थ संसओ नत्थि। चारित्तम्मि असंते सव्वा दिक्खा निरस्थिआ समणत्तणस्स सारा भिक्खायरिआ जिणेहिं पन्नत्ता / इत्थ परितप्पमाणं तं जाणसु मंदसंवेगं , नाण-चरणस्स मूलं भिक्खायरिया जिणेहिं पन्नत्ता। इत्थ य उज्जममाणं तं जाणसु तिव्वसंवेगं धम्मरुई अणगारो सो नंदउ दिसेणसमणो वि / जे एसणाइ समिआ पसंसिआ सक्कपमुहेहि पिंडेण अकप्पेण वि पोसिज्जइ अहह एरिसो देहो / सुद्धेणं चिअ धीरा पिंडं पिंडेण पोसंति जह अब्भंगणलेवा सगडक्ख वणाण जुत्तिओ हुँति / इअ संजमभरवहणट्ठयाए साहूण आहारो / जो जहव तहव लद्धं गिण्हइ आहार-उवहिमाईअं। समण-गुण-मुक्कजोगी संसारपवड्डओ भणिओ निरवज्जाहारेणं साहूणं निच्चमेव उववासो। उत्तरगुणवुड्किए तह वि उववासमिच्छंति गहिअमसुद्धं केण वि कारणजाएण भोअणावसरे / तं चयमाणो सुद्धो भुंजतो लिप्पए नियमा अविकिअवयणपमाणे कवले बत्तीस साहुमाहारं। भणिऊण नमोक्कार पयासदेसढिओ जिमइ // 12 // // 13 // // 14 // // 15 // // 16 // . // 17 // 46