________________ संतोससारत्तमलज्जिरत्तं, विसिट्ठचिट्ठासु विणीयया य / / पियंवयत्तं नयसुंदरत्तं, आगामिकालस्स पलोयणं च // 17 // कयं मए किं करणिज्जजायं, किं नो कयं किं व कयं न सम्मं / किं वा पमत्तो न सरामि इण्डिं, इच्चाइ किच्चाणविभावणं च // 18 // गंभीरधीराण गुणायराणं, सणंकुमाराइमहामुणीणं / आणंदमाईण य सावयाणं, सयाणुसारेण पयट्टणं च // 19 // किं भूरिभेएण पयंपिएणं, जं दूसणं नो सकुलक्कमस्स / न या वि जं लोगदुगे विरुद्धं, तं सव्वजत्तेण निसेवणिज्जं // 20 // इय विमलगुणाणं अज्जणम्मी रयाणं,परमपयनिमित्तं बद्धलक्खाण तुम्हं। करसररुहमज्झे ठाइही सग्गमुक्खुब्भववरसुहलच्छी सग्गुणायट्ठिय व्व // 1 // // 2 // // 3 // द्वितीयं कुलकम् / पबलपवणप्पणुल्लिय-कयलीदललग्गसलिललवलोलं / अवलोइऊण जीविय-जुव्वण-धण-सयणसंजोगं संजोगमूलमिह पुण, पुणरुत्ताणंततिक्खदुक्खोहं / लक्खिय सत्ताण सदो-वउत्तचित्तेहि तुब्भेहि चितेयव्वं भवनि-ग्गुणत्तणं दुल्लहत्तणं तह य / माणुस्सखित्तपमुहाण कुसलनिप्पत्तिहेऊणं . भावेयव्वं भव्वं, निव्वाणसुहिक्ककारणमवंझं / सिद्धंततत्तमुज्झित्तु कुग्गहं निपुणबुद्धीए जम्हा थेवो वि हु होइ कुग्गहो सयलकुसलपच्चूहो / तालउडविसलवो इव, महंतसंमोहहेऊ य जइ वि हु बहुविहमयभे-यसवणओ समयअनिउणत्तणओ। उस्सग्गऽववायविवे-गविरहओ अतहबुद्धित्ता 181 // 4 // // 5 //