________________ // 32 // // 33 // // 34 // // 35 // // 36 // // 37 // गिहीणं जे उ गेहाओ, आणित्ताऽसणपाणगं / निक्कारणं पि छड्ता, जंति ते सुग्गइं कहं ? संगहति य जे दव्वं, गुरूणं न कहंति य / ते वि भट्ठाऽहमा धिट्टा, भमंति भवसायरे अवेलाए न साहूणं, वसहीए साविगागमो / माहुणीए विसेसेणमसहायाइ संगओ गीयत्था गुरुणो जं जं, खित्तकालाइजाणगा / करिति तमगीयत्थो, जो कुज्जा दंसणी न सो सुद्धसद्धमकारीणं, जे सुगुरूणमंतिए / सुद्धं सइंसणं लिति, सग्गसिद्धिसुहावहं सावियाओ वि एवं जा, गिण्हंति व सुदंसणं / बासि सरीरदव्वाइं, हुज्जा सुगुरुसंतिया सावया सावियाओ वा, गुरुत्ता तं धणाइयं / . बेन वंछंति तं दाउं, दिनं पि गुरुणो पुरा . ते कहं तेसि आणाए, वहति समईवसा। .. बत्ता सम्मत्तवत्ता वि, दूरं सा तेहि सव्वहा सावया तुच्छवित्ता वि, पोसंती सकुडुंबयं / धणधनोवओगेण, जावज्जीचं पि सायरं . तट्ठाणट्ठाण साहूणमन्नवत्थाइचिंतणं / . . कुर्णति सवणीणं ण, तेसिं सम्मत्तमत्थि किं ? एवं विसोवगं सड्ढो, तिसु ठाणेसु देइ जो / महिगं वा ऊसवाईसु, सम्मत्ती होइ नन्नहा म्सग्गेणासणाईणि, कप्पणिज्जाणि जाणिउं / माहाकम्माइदोसेण, जाणि चत्ताणि दूरओ // 38 // // 39 // // 40 // // 41 // // 42 // // 43 // 173