________________ जो गिहकुडंबसामी संतो मिच्छत्तरोवणं कुणइ। तेण सयलो वि वंसो, पक्खित्तो भवसमुद्दम्मि .. // 12 // कटुं करेसि, अप्पं दमेसि, अत्थं वहेसि धम्मत्थं / एगं न चयसि मिच्छत्तविसलवं तेण वुड्डिहिसि // 13 // जइ न कुणसि तवचरणं, न पढसि, न गुणेसि देसि नो दाणं। ता इत्तियं न सक्कसि, जं देवो इक्क अरिहंतो // 14 // दुविहं लोइयमिच्छं देवगयं गुरुगयं मुणेयव्वं / लोउत्तरं वि दुविहं देवगयं गुरुगयं चेव , . // 15 // चउभेयं मिच्छत्तं, तिविहं तिविहेण जो विवजेइ / अकलंकं सम्मत्तं होइ फुडं तस्स जीवस्स // 16 // सुलहो विमाणवासो, एगच्छत्ता य मेइणी सुलहा। दुलहा पुण जीवाणं जिणिदवरसासणे बोही // 17 // // 1 // ॥सम्यक्त्वस्वरूपकुलकम् // जह सम्मत्तसरूवं, परूवियं वीरजिणवरिंदेणं / तह कित्तणेण तमहं, थुणामि सम्मत्तसुद्धिकए सामिय ! अणाइऽणंते, चउगइसंसारघोरकंतारे। . मोहाइकम्मगुरुठिइविवागवसओ भमइ जीवो // 2 // पल्लवलुवमाइ अहापवित्तिकरणेण को वि जइ कुणइ / पलियाऽसंखयभागोणकोडिकोडायरठिइसेसं // 3 // तत्थ वि गंठि घणरागदोसपरिणइमयं अभिदंतो। गंठिअ जीवो वि हहा ! न लहइ तुह दंसणं नाह! // 4 // पहिय-पिवीलिअनाएण को वि पज्जत्तसन्निपंचिंदी। भव्वो अवड्डपुग्गलपरियट्टऽवसेससंसारो // 5 // 146