________________ // 3 // ॥मिथ्यात्वविचारकुलकम् // चित्तट्ठमि, महनवमी, कत्तियसंकंति, सूर-ससिगहणं / पवभरण, पडण-पाडण, गवाइदाणं च, सद्धाई // 1 // सत्तमि-पंचमि-गोमयतिहीअ, दो अट्ठमी, तिहिविसेसा / सिवरत्ति, उत्तरायण, एगारिसि, गउरहत्थाई // 2 // तरुरोवण कन्नाहल अक्खयतइया य, संडवीवाहं / रविवार-सोमवारे, जलंजली, बारसिपयाणं गिम्हुत्तराण, परतित्थगमण खणकरण होमकरणाई / तह खित्त-गुत्तपत्ताई, देवयापूअणं चेव // 4 // छम्मासिय-मासिय-वरिसियाइं नवमीइ तज्जियं चेव / मिच्छत्तजत्त-भोअण, लोइयगुरुपायपडणं च / महलच्छी कज्जलिया जागाई भोजणदाण परिवेत्ता / दिसिबलि, अंबिलि-उंबरपूआ चुल्हीयमाईणं / // 6 // मिच्छट्ठिीजक्खाइपूयणं, जिणमए असद्दहणं / मिच्छत्तकारणाई तिविहं तिविहेण वज्जिज्जा मिच्छत्तमोहमूढो जीव ! तुमं कत्थ कत्थ न हु भमिओ। छेयण-भेयणपमुहं किं किं दुक्खं न पत्तो सि? न वि तं करेइ अग्गी, नेय विसं, नेय किण्हसप्पो य। जं कुणइ महादोसं, तिव्वं जीवस्स मिच्छत्तं // 9 // जइ इच्छसि सिद्धिपुरं, गंतुं संसारसायरं तरिउं / ता जीव ! तिविह तिविहं, सव्वं मिच्छं विवज्जेह // 10 // मिच्छत्तं उच्छिंदिय, सम्मत्तारोवणं नियकुलस्स / जो कुणइ तेण वंसो, सिद्धिपुरीसम्मुहो विहिओ // 11 // // 7 // // 8 // 145