________________ // 2 // पू.आ.श्रीजयानन्दसूरिविरचितम् ॥मिथ्यात्वकुलकम् // पबलमिच्छत्तविच्छित्तिभरभंजणं, परमजोईसरं नमवि वीरं जिणं / भणिमु भावेण हं किमवि मिच्छत्तयं, तं निसामेह भो भवियणा! संपयं जह य जग्गंतु चोरेहिं न हुघिप्पए, नयणि पिक्खंत अवमग्गिन पयट्टए। हत्थठियदीवुकूवम्मिनो निवडए, नायमिच्छत्तफलुन भवि जिउ भमडए वायगुंगलियपोय व्व जिणि दुल्लए, भूअगहिअव्व, गहिलुव्व जिणि बुल्लए। जेण अंधुव्व न हुकिपिजिउ पिक्खए, तमिह मिच्छत्तयं को नरो कंखए? // 3 // जेण लोहु व्व जिउ भवजले बुडुए, कोसगारु व्व अप्पं पिजिणि बंधए जेण तिलु जेम जिउ पिल्लपंपावए, तस्स मिच्छस्स कुइ कारणे धावए मिच्छतिहु धम्म-गुरु-देवयासंगयं, अहवपंचविहअणभिगह-ऽभिग्गहमयं अभिनिवेसेण संसइय-मणभोगयं, चयह भवहेउसव्वं पि मिच्छत्तयं मास-छमास-वच्छरिअसद्धाइयं, जत्त कयभोयणं, नवमियं, तज्जियं। पिंडदाणंच, गहणेसुन्हाणाइयं, सनिवारम्मि विरयंति तिलाइयं 6 भुज्जदाणं ज परिवत्ति, सिवरत्तिआ जाग, सलिलंजली दब्भतिलजुत्तिया अन्नतित्थीयगुरु-देवयावंदणं, गीइ ससि-रोहिणी, माउराठावणं // 7 // चंददसिआ य, छट्ठीदिणे जग्गणं, होलि परिदक्खिणोवाइए मन्नणं। खित्त-जल-गुत्तपत्ताइ सुरसेवणं, दान खणकरणयं, गिण्ह उत्तारणं 8 संडवीवाह, परतित्थथुइ गमणयं, कुमरिभत्तं च, तरुरोवणं नमणयं। दिसिबली, उंबरं बिल्लि चुल्हिच्चणं, परवदाणं च, रेवंतपहपूअणं 9 143