________________ // 20 // // 21 // हारवियं सम्मत्तं, सामन्नं नासियं धुवं तेहिं / परचित्तरंजणट्ठा, आणाभंगो कओ जेहिं / आणाए अवटुंतं, जो उववूहिज्ज जिणवरिंदाणं / तित्थयरस्स सुयस्स य, संघस्स य पच्चणीओ सो किं वा देइ वराओ, मणुओ सुट्ठ वि धणी वि भत्तो वि / आणाइक्कमणं पुण, तणुयं पि अणंतदुहहेउं तम्हा सइ सामत्थे, आणाभट्ठम्मि नो खलु उवेहा / अणुकुलगइयरेहिं, अणुसट्ठी होइ दायव्वा सो धन्नो सो पुनो, स माणणिज्जो य वंदणिज्जो य / गड्डरिगाइपवाहं, मुत्तुं जो मन्नए आणं // 22 // // 23 // // 24 // // 2 // // सङ्घस्वरूपकुलकम् // केई उम्मग्गठियं उम्मग्गपरूवयं बहुं लोयं / . दटुं भणंति संघ, संघसरूवं अयाणंता . सुहसीलाओ सच्छंदचारिणो वेरिणो सिवपहस्स / आणाभट्ठाओ बहुजणाओ मा भणह संघु त्ति अम्मापियसारिच्छो सिवघरथंभो य होइ य सुसंघो / आणाबज्झो संघो सप्पु व्व भयंकरो इण्डिं. अस्संघं संघं जे भणंति रागेण अहव दोसेणं / छेओ वा मूलं वा पच्छित्तं जायए तेसिं काऊण संघसदं अव्ववहारं कुणंति जे के वि / पष्फोडियसउणीअंडगं व ते हंति निस्सारा संघसमागममिलिया जे समणा गारवेहिं कज्जाइं / साहिज्जेण करिती सो संघाओ न सो संघो // 3 // // 4 // 139