________________ // 12 // // 13 // जिणवरधम्मेण विणा संसारमहोदही अपारिल्लो / तरिठं न जेण तीरइ, तेण निसिद्धो गमो तत्थ दुविहं लोइयमिच्छे देवगयं गुरुगयं मुणेयव्वं / लोगुत्तरं च दुविहं देवगयं गुरुगयं चेव चउभेयं मिच्छत्तं तिविहं तिविहेण जो विवज्जेइ / अकलंकं सम्मत्तं, होइ फुडं तस्स जीवस्स ते धन्ना, ताण नमो, ते च्चिय चिरजीविणो, बुहा ते य / जे निरइयारमेयं धरति सम्मत्तवररयणं // 14 // // 15 // // सम्यक्त्वकुलकम्-३ // वेसागिहेसु गमणं, महाविरुद्धं जहा कुलवहूणं / जाणाहि तहा सावय !, सुसावगाणं कुतित्थेसु * भणइ जणो नारीणं, सइत्तणं कत्थ वेसगिहगमणे / एवं कुतित्थगमणे, सम्मत्त सावगस्स कहं . *किर धम्मम्मि कुसलओ, सुसावगो सो वि आगओ इहई। सम्हा एस पहाणो, सिवाइभणिओ य जो धम्मो // 3 // *एवं तब्भत्ताणं, थिरकरणं कुणइ तत्थ वच्चंतो। पद्धारइ मिच्छत्तं, सुबोहिबीयं हणइ तेसिं * अन्नेसि सत्ताणं, मिच्छत्तं जो करेइ मूढप्पा / सो तेण निमित्तेणं, न लहइ बोहिं जिणाभिहियं सो परमप्पाणं चिय, पाडेइ दुरुत्तरम्मि संसारे / मिच्छतकारणाइं, जो न विवज्जेइ दूरेणं . // 6 // चितामणि व्व दुलहं सम्मत्तं पाविऊण अन्नेहिं / तं हारवेइ जीवो, लोइयतित्थेसु जंतेणं 137 // 4 // 0 0