________________ हु दुक्करे वि मग्गे विमग्गि एत्थेव अस्थि हूवाओ। खणमित्तं पि न दिज्जइ मणपसरो जं पंमायस्स // 39 // परमत्थं जाणंतो दंसियमग्गे सया वि वढ्तो / जइ खलइ कोइ कहमवि सरणं भवियव्वया तत्थ // 40 // कित्तियमित्तं बहुसो मणनिग्गहकारणं पयंपेमि / धन्नाण एत्तियं पि हु जायइ चिंतामणिसमाणं // 41 // गुरुकम्माणं एयं पुणरवि जाणावयं पि किर कह वि / पत्तं पि वरनिहाणं वियलियपुनस्स व न ठाइ // 42 // पइदियह जइ एवं झाएमी तुह जिणिंद ! आणाए / तो जयथुयपायपउम ! नाहं बीहेमि भवरने // 43 // सद्धासंवेगजुओ मणनिग्गहभावणं इमं जीवो / झायंतो निव्विग्धं कल्लाणपरंपरं लहइ // 44 // पू.आ. श्रीरत्नसिंहसूरिविरचितम् .. // पर्यन्ताराधनाकुलकम् // (मरणकालिकधीरताकुलकम्) सुहियो(ओ) वा दुहिओ वा थोवं जीवित्तु अहव बहु लोए / मा सो करेउ खेयं जइ पावइ पंडियं मरणं // 1 // जे संसारे पुव्वं मणुयभवा पाविया तुएऽणंता / सव्वाण वि ताण अहो एसो च्चिय लहइ तिलयत्तं जेण सा सामग्गी पत्ता तुमए अणंतसुहजणणी / ता धीरत्तं काउं ठावसु चंदे नियं नाम // 3 // परहत्थगएण तए पुलिं रे जीव ! किं न जं सहियं / / संपइ सुहडो होउं किं न हु गिण्हेसि जयपडायं ? // 2 // // 4 // 109