________________ जा न विहाई रयणी तावय चितेसु जीव ! कि पि तमं / अन्नह आउम्मि गए कीणा चिंताइ तुज्झ कहा ? - // 15 // कामवियारविहूणो धन्नो इह चिंतए परं तत्तं / ... जइ पत्तो वि वियारं चिंतइ धन्नाण सो राओ .. // 16 / / काऊण गुरुपइन्नं मणमोहणकरिवरम्मि जह चडिओ। . चुक्कइ नियवयणाओ धन्नो वि तहा वियारगओ // 17 // ता पढम पि वियारं मणमोहणकरिवरस्स सारिच्छं। वारह दुहसयमूलं जइ इच्छह सुहसमिद्धीओ // 18 // पंचहि वि इंदिएहि अणंतसो नत्थि जं किर न भुत्तं / तह वि न जाया तत्ती ता चेययसि हा कया मूढ ! // 19 // अह चेययसि कइया वि हु थेवो वि ह जत्थ नत्थि कोइ गुणो।। एसा पुण सामग्गी कयायि होहित्ति को मुणइ ? // 20 // सयलं पि भवसरूवं नाऊणं गुरुमुहाओ मुणिणो वि।। वटुंति जे अकज्जे अहह महामोहविप्फुरियं // 21 // भणसि मुहेणं सव्वं तत्तं अइसुंदरं तुमं जीव ! / जं न कुणसि कारणं तं मन्ने गरुयकम्मो सि // 22 // चिट्ठइ राई पासइ न कोइ हवउ जह तहवऽणुट्ठाणं / ' इय मूढ ! लोयरंजय कुणमाणो किं पि न लहेसि! // 23 // जइ एगो च्चिय रागो निग्गहिओ होज्ज जीव ! संसारे। अट्ठण्ह वि कम्माणं ता उच्छेओ कओ झत्ति // 24 // को दिव्वं लंघेउं अहवा सक्कइ वियाणमाणो वि / तह वि हु उज्जमसीलो होज्ज सया रायविजयम्मि // 25 // जो चिंतइ न परतत्तं देइ कुबुद्धिं वयाउ भंसेइ / * तेण समं संसग्गी वज्जह दूरेण मणसा वि . . // 26 // / 8