________________ // 144 // // 145 // // 146 // // 147 // . // 148 // // 149 // अहिमाणविसोपसमत्थयं च थुवंति देवगुरुणो य। तेहिं पि जओ माणो हीही तं पुव्वदुच्चरियं जो जिणआयरणाए लोओ न मिलेइ तस्स आयारे / हा हं मूढ करितो अप्पं कह भणसि जिणपणयं ज चिय लोओ मन्नइ तं चिय मन्नति सयललोया वि। जं मन्नइ जिणनाहो तं त्रिय मन्नति कि वि विरला . साहम्मियाओ अहिओ बंधुसुयाईसु जाण अणुराओ / तेसिं न हु सम्मत्तं विनेयं समयनीईए' जइ जाणसि जिणनाहो लोयायाराण पक्खओ हूओ। ता तं तं मनंतो कह मनसि लोयमायारो जे मन्ने वि जिणंदं पुणो वि पणमंति इयरदेवाणं / मिच्छत्तसंनिवायगघत्थाणं ताण को विज्जो एगो सुगुरू एगा वि सावगा चेइयाणि विविहाणि / तत्थ य जं जिणदव्वं परुप्परं तं न विच्चति ते न गुरू नो सड्ढा न पूइओ होइ तेहिं जिणनाहो। .. मूढाण मोहठिई सा नज्जइ समयनिउणेहिं सो न गुरू जुगपवरो जस्स य वयणम्मि वट्टए भेओ। चिय भवणसड्ढगाणं साहारणदव्वमाईणं संपइपहुवयणेण वि जाव न उल्लसइ विहिविवेयत्तं / ता निविडमोहमिच्छत्त-गठिया दुट्ठमाहप्पं बंधणमरणभयाइं दुहाई तिक्खाइं नेय दुक्खाई। दुक्खाण दुहनिहाणं पहुवयणासायणाकरणं पहुवयणविहिरहस्सं नाऊणं जाव दीसए अप्पा। ता कह सुसावयत्तं जं चित्तं धीरपुरिसेहि // 150 // // 151 // // 152 // // 153 // // 154 // // 155 // 282