________________ // 96 // // 97 // // 98 // // 99 // रहे यथा बल योग में, ग्रहे सकल नय सार / भावजैनता सो लहे, वहे न मिथ्याचार मारग-अनुसारी क्रिया, छेदे सो मतिहीन / कपट-क्रिया-बल जग ठगे, सो भी भवजल मीन निज निज मतमें लरि परे, नयवादी बहु रंग / उदासीनता परिणमे, ज्ञानीकुं सरवंग दोउ लरे तिहां इक परे, देखनमें दुःख नाहि / उदासीनता सुखसदन, पर प्रवृत्ति दुःख छांहि उदासीनता सुरलता, समतारस फल चाख / परपेखनमें मत परे, निजगुण निजमें राख उदासीनता ज्ञानफल, पर-प्रवृत्ति है मोह / शुभ जानो सो आदरो, उदित विवेकप्ररोह दोधक शतके उद्धर्यु, तंत्र समाधि विचार। धरो एह बुध ! कंठमें भावरलनको हार ज्ञान विमान चारित्र पवि, नंदन सहज समाधि / मुनि सुरपति समता शची, रंगे रमे अगाधि कवि जशविजये रच्यो, दोधक शतक-प्रमाण / * अह भाव जो मन धरे, सो पावे कल्याण // 100 // // 101 // // 102 // // 103 // // 104 // 15