________________ // 41 // // 42 // // 43 // // 44 // // 45 // // 46 // मृदुत्वभिदुरोद्योगा-देनं मानमहीधरम् / भित्त्वा विधेहि हे स्वान्त ! प्रगुणां सुखवर्तिनीम् चित्रमम्भोजिनी(दल)-कोमलं किल मार्दवम् / वज्रसारमहङ्कार-पर्वतं सर्वतः स्यति अस्मिन् संसारकान्तारे, स्मेरमायालतागृहे। अश्रान्तं शेरते हन्त !, पुमांसो हृतचेतसः मायावल्लीवितानोऽयं, रुद्धब्रह्माण्डमण्डपः / विधत्ते कामपिच्छायां, पुंसां सन्तापदीपनीम् सूत्रयन्ती गति जिह्मां, मार्दवं बिभ्रती बहिः / अजस्रं सर्पिणीवेयं, माया दन्दश्यते जगत् प्रणिधाय ततश्चेत-स्तनिरोधविधित्सया। ऋजुतां जाङ्गुलीमेतां, शीतांशुमहसं स्मरेत् लोभद्रुममवष्टभ्य, तृष्णावल्लिरुदित्वरी। आयासकुसुमस्फीता, दुःखैरेषा फलेग्रहिः . आशाः कवलयन्नुच्च-स्तमो मांसलयनयम् / .. लोभः पुमर्थहंसानां, प्रावृषेण्यघनाघनः क्षमाभृदप्रियः साधु-वृत्तलक्ष्मीविनाकृतः / मर्यादामदयं लुम्पन्, लोभोऽम्बुधिरयं नवः .. लवणोदन्वतो यः स्याद-गाधबोधने विभुः / अलम्भविष्णुः सोऽप्यस्य, नैव वैभवसंविदे समन्तात्तस्य शोषाय, स्वस्थीकृतजलाशयम् / इमं मानससन्तोष-मगस्तिं श्रय सत्वरम् यस्मै समीहसे स्वान्त !, वैभवं भवसम्भवम् / अनीहयैव तद्वश्य-मवश्यं श्रय तं (तत्) सुखम् 143 // 47 // // 48 // // 49 // // 50 // // 51 // // 52 //