SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ // 48 // // 49 // // 50 // // 51 // // 52 // // 53 // बहुसो नरयगयेणं, विअणानिवहेहिं पूरिओ कालो। कंदंतकरतेणं, सागरमाणो महाघोरो निरउव्वट्टो वि पुणो, संसरमाणो तिरियजोणीसु / खुहतिण्हवेयणहओ, भमिओ संसारकंतारे तिरियत्तणा उवट्टो, संसरमाणो मणुस्सजाईसु / विविहं दुक्खं दुग्गं, सारीरं माणसं पत्तो तुडिचडणेण भमंतो, सुरालयं कह वि पाविउं जीवो। पाहुणउ व्व रमित्ता, कइ वि दिणेन्नत्थ पुण एइ जम्मजरमच्चुरोगा, सोगा बाहंति सव्वलोगम्मि। मुत्तूण सिद्धिखित्तं, संसाराइअभावं ति एसो चउगइगुहिरो, संसारमहोअही दुरुत्तारो / मच्छु व्व जहा जीवा, अणोरपारम्मि भमणंति इअ संसारे असारे, अणोरपारम्मि ताव हिंडंति / जाव न दयाइधम्मं, जीवा काऊण सिझंति अन्नाणं खलु कटुं, अन्नाणाओ न किंचि कट्ठयरं / भवसायरं अपारं, जेणावरिआ भमंति जिआ इगबितिचउरिदियए, संमुच्छिमजीवरासिपडिआणं / दुलहाइ धम्मबोही, अबोहिलाभासु जोणीसु को नारयाणं, धम्मं, कहेइ ताणं पि बोही दूरेणं / तिरिआ वि किसनत्ता, तेणं अइदुलहो बोहिपहो 'मणुआ वि जवणसयबब्बराइ, बहुविहअणारिया कत्तो / बोहि लहंति मूढा, दयाइपरिणामपरिमुक्का अंधा बहिरा मूगा, पंगू रोगेहिं पीडिया विविहा / न लहंति बोहिलाभं, पडिया पावाडवीमज्झे - 135 // 54 // // 55 // / / 56 // // 57 // // 58 // // 59 //
SR No.004456
Book TitleShastra Sandesh Mala Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2005
Total Pages314
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy