________________ // 36 // // 37 // // 38 // // 39 // // 40 // . // 41 // चारुश्रीशुभदौ नौमि रुचा वृद्धौ प्रपावनौ / श्रीवृद्धौतौ शिवौ पादौ शुद्धौ तव शशिप्रभ शसनाय कनिष्ठायाश्चेष्टाया यत्र देहिनः / नयेनाशंसितं श्रेयः सद्यः सन्नज राजितः शं स नायक निष्ठायाश्चेष्टायायत्र देहि नः / न येनाशं सितं श्रेयः सद्यः सन्नजराजितः शोकक्षयकृदव्याधे पुष्पदन्त स्ववत्पते / . लोकत्रयमिदं बोधे गोपदं तव वर्त्तते लोकस्य धीर ते बाढं रुचयेपि जुषे मतम् / नो कस्मै धीमते लीढं रोचतेपि द्विषेमृतम् एतच्चित्रं क्षितेरेव घातकोपि प्रपादकः / भूतनेत्र पतेस्यैव शीतलोपि च पावकः काममेत्य जगत्सारं जनाः स्नात महोनिधिम् / विमलात्यन्तगम्भीरं जिनामृतमहोदधिम् / हरतीज्याहिता तान्तिं रक्षार्थायस्य नेदिता। तीर्थादे श्रेयसे नेताऽज्यायः श्रेयस्ययस्य हि अविवेको न वा जातु विभूषापन्मनोरुजा। वेषा मायाज वैनो वा कोपयागश्च जन्म न आलोक्य चारु लावण्यं पदाल्लातुमिवोर्जितम् / त्रिलोकी चाखिला पुण्यं मुदा दातुं ध्रुवोदितम् अपराग समाश्रेयन्ननाम यमितोभियम् / / विदार्य सहितावार्य समुत्सन्नज वाजितः अपराग स मा श्रेयन्त्रनामयमितोभियम् / .. विदार्यसहितावार्य समुत्सन्नजवाजितः // 42 // // 43 // // 44 // // 45 // // 46 // वाजिनः . // 47 //