________________ // 1 // // 2 // // 3 // // 4 // पू.श्री. जिनभद्रगणिक्षमाश्रमणविरचितम् ॥ध्यानशतकम् // वीरं सुक्कज्झाणग्गि - दड्ढकमिंधणं पणमिऊणं / जोईसरं सरण्णं, झाणज्झयणं पवक्खामि जं थिरमज्झवसाणं, तं झाणं, जं चलं तयं चित्तं / तं होज्ज भावणा वा, अणुपेहा वा अहव चिंता अंतोमुहत्तमेत्तं, चित्तावत्थाणमेगवत्थुम्मि / छउमत्थाणं झाणं, जोगनिरोहो जिणाणं तु अंतोमुहुत्तपरओ, चिंता झाणंतरं व होज्जाहि / सुचिरं पि होज्ज बहु-वत्थुसंकमे झाणसंताणो अट्टं रुदं धम्मं, सुकं झाणाइ, तत्थ अंताई। निव्वाणसाहणाई, भवकारणमट्टरुद्दाई .. अमणुण्णाणं सद्दाइ-विसयवत्थूणं दोसमइलस्स। . धणियं विओगचिंतण - मसंपओगाणुसरणं च . तह सूलसीसरोगाइ - वेयणाए विजोगपणिहणं / तदसंपओगचिंता, तप्पडिआराउलमणस्स इट्ठाण विसयाईण, वेयणाए य रागरत्तस्स / अविओगऽज्झवसाणं, तह संजोगाभिलासो अ देविंदचक्कवट्टित्तणाई, गुणरिद्धिपत्थणामईयं / / अहमं नियाणचिंतण - मण्णाणाणुगयमच्चंतं एवं चउव्विहं, रागद्दोसमोहंकियस्स जीवस्स / अट्टज्झाणं संसार - वद्धणं तिरियगइमूलं मज्झत्थस्स उ मुणिणो, सकम्मपरिणामजणियमेयंति / वत्थुस्सभावचिंतण - परस्स सम्मं सहंतस्स // 6 // // 7 // // 8 // // 9 // // 10 // // 11 //