________________ मग्गाणुसारिणो खलु, संविग्गा सुद्धमग्गकहणगुणा / इय एएसि वयणे, अविगप्पेणं तहक्कारो // 155 / / भावणियंठाण तओ, णेयं अविगप्पगज्झवयणाणं / संविग्गपक्खिआणं, दव्वणियंठाण य गुरुत्तं // 156 // गुरुतत्तणिच्छओ पुण, एसो एक्काइगुणविहीणे वि। जा सुद्धमग्गकहणं, ताव ठिओ होइ दट्ठव्वो // 157 // संसारुद्धारकरो, जो भव्वजणाण सुद्धवयणेणं / णिस्संकियगुरुभावो, सो पुज्जो तिहुअणस्सा वि // 158 // पवयणगाहाहिं फुडं, गुरुतत्तं णिच्छियं इमं सोउं। .. गुरुणो आणाइ सया, संजमजत्तं कुणह भव्वा ! // 159 // गुरुआणाइ कुणंता, संजमजत्तं खवित्तु कम्ममलं। सुद्धमकलंकमउलं, आयसहावं उवलंहंति // 160 // विन्नाणाणंदघणे, आयसहावम्मि सुठु उवलद्धे / करयलगयाइं सग्गापवग्गसुक्खाइं सव्वाइं // 161 // आयसहावे पत्ते, परपरिणामे य सव्वहा चत्ते / वाहिविगमे व सुक्खं, पयडं अपयत्तसंसिद्धं // 162 // सुठु वि जयमाणाणं, ण तयं किरियामलम्मि संतम्मि। जं खलु उवसमसुक्खं, लद्धसहावस्स णाणिस्स // 163 // तम्हा गुरुआणाए, कायव्वा नाणपुब्विगा किरिया / अब्भासो कायव्वो, सुहनाणे वा जहासत्ति // 164 // किं बहुणा इह जह जह, रागद्दोसा लहुं विलिजंति। . तह तह पयट्टिअव्वं, एसा आणा जिणंदाणं // 165 // गुरुतत्तणिच्छयमिणं, सोहिंतु बुहा सया पसायपरा। पवयणसोहाहेळं, परगुणगहणे पवढ्ता // 166 // 71