________________ जइ वि य पडिमासु जहा, मुणिगुणसंकप्पकारणं लिंगं / उभयमवि अस्थि लिंगे, ण य पडिमासूभयं अस्थि // 179 // णियमा जिणेसु उ गुणा, पडिमा उद्दिस्स जे मणे कुणइ। अगुणे य विआणतो, कं णमउ मणे गुणं काउं // 180 // एएण अण्णठवणा, पराकया होइ णिग्गुणत्तेणं / गुणसंकप्पाजोगा, गुणमित्ते जं तइच्छा य // 181 // ण य ठवणा वि पवट्टइ, तज्जातीए तहा सदोसे य। उववाइयं च एयं, सम्म भासारहस्सम्मि . // 182 // सइमज्जायाए वि हु, सुहसंकप्पो पराकओ इत्तो। ... णिग्गुणतुल्लत्ताए, जं णायाए ण सो होइ // 183 // मुद्धस्स जइ वि कासइ, लिंगाउ सई हविज्ज सुमुणीणं। तह वि इमं ण पमाणं, विसेसदंसीण जं भणियं // 184 // जह वेलंबगलिंगं, जाणंतस्स णमओ धुवं दोसो। णिद्धंधस त्ति णाऊण वंदमाणे धुवं दोसो // 185 // अववाएण य दोसो, ण णिग्गुणाणं पि वंदणे होइ। गुरुलाघवचिंताए, एवं दाणाइसु वि णेयं // 186 // इय उज्जएयरगयं, णाऊण विहिं सुआणुसारेणं / उज्जमइ भावसारं, जो सो आराहगो होइ // 187 // विहिणा इमेण जो खलु, कुगुरुच्चाएण सुगुरुसेवाए। ववहरइ विसेसण्णू, जसविजयसुहाई सो लहइ // 188 // . चतुर्थोल्लासः / सुगुरुत्तं साहूणं, गंथच्चाएण होइ नाणीणं। इहरा विवरीयत्थं, तेसिं णिग्गंथणामं पि // 1 // 2