________________ // 247 // // 248 // // 249 // // 250 // // 251 // // 252 / / आभव्वं पुण तत्थ वि, छ म्मीसं चेव होइ वल्लिदुगं / सेसाण उ वल्लीणं, परलाभो होइ णाएणं जइ अभिधारेंति तओ, अभिधारंतस्स नालबद्धाई। चिंधाइविसंवाए, सुयगुरुणो हुंति आभव्वा दिट्ठोऽदिट्ठो य दुहा, अभिधारतो अणप्पणे माई। सो अप्पणे अमाई, अणप्पणे होइ ववहारो एवं ता जीवंते, अभिधारंतो उ एइ जो साहू। कालगए एयम्मि हु, इहमन्नो होइ ववहारो अभिधारणकालम्मि य, पुव्वं पच्छा व होइ कालगए। सीसाणं मज्झिल्ले, जइ अस्थि सुअंच दिति तओ एवं नाणे तह दंसणे य सुत्तत्थतदुभए चेव। वत्तणसंधणगहणे, णव णव भेया य इक्किक्का पासत्थाऽगीयत्था, उवसंपज्जंति जे उ चरणट्ठा। . सुत्तोवसंपयाए, जो लाभो सो खलु गुरूणं गीयत्था ससहाया, असमत्ता जं लहंति सुहदुक्खी। सुत्तत्थे तक्ता, समत्तकप्पी उ तं तेसिं धम्मकहाइ पढंते, कालियसुअ दिट्ठिवाय अत्थे य। उवसंपयसंजोगा, दुगमाइ जहुत्तरं बलिआ आवलिआ मंडलिआ, पुव्वुत्ता छिण्णऽछिण्णभेएणं / उवसंपया सुए इह, परंपराऽणन्तरा णेया . अभिधारंतो उवसं-पण्णो दुविहो उ होइ सुहदुक्खी। एगत्तदोसओ सुअपुण्णो जो गच्छमब्भेइ पुव्विं व सुहदुहम्मि वि, आवलिआमंडलीसु आभव्वं / अभिधारिजंते खलु, अभिधारते उ वल्लिदुगं 36 // 253 // // 254 // // 255 // // 256 // // 257 // // 258 //