________________ सव्वं पि संतविभवो, तक्कालं मग्गिओ धणं देइ / जो पुण असंतविभवो, णिरविक्खो तत्थ फलवंझो // 192 // णासेइ किलेसेणे, धणमप्पाणं च धारगं चेव / जो पुणं सहेइ कालं, साविक्खो रक्खई सव्वं // 193 // संतविभवेहिँ तुल्ला, धिइसंघयणेहिँ जे उ संपन्ना / ते आवण्णा सव्वं, वहति णिरणुग्गहं धीरा // 194 // संघयणधितिविहीणा, असंतविभवेहिं होंति तुल्ला उ। णिरविक्खो जइ तेसिं, देइ ततो ते विणस्संति // 195 // तेणं तित्थुच्छेओ, अणवत्थपसंगवारणाकुसलो। सावेक्खो पुण रक्खइ, चरणं गच्छं च तित्थं च // 196 // कल्लाणगमावन्ने, अतरंत जहक्कमेण काउं जे। . दस कारेंति चउत्थे, तद्दुगुणायंबिलतवे वा // 197 // एक्कासणपुरिमड्डा, णिव्विगई चेव बिगुणबिगुणाओ। पत्तेयासहुदाणं, कारिंति व सन्निगासं तु . // 198 // चउतिगदुगकल्लाणं, एगं कल्लाणगं च कारेंति / जं जो उत्तरति सुहं, तं तस्स तवं पभासिति // 199 // एवं सदयं दिज्जति, जेणं सो संजमे थिरो होइ। . ण य सव्वहा ण दिज्जति, अणवत्थपसंगदोसाओ // 200 // णिज्जवगाण वि इण्डिं, गीयत्थाणं असंभवो णत्थि। तम्हा सिद्धं चरणं, दुप्पसहंतं अविच्छिण्णं // 201 // दंसणनाणठिअं जइ, तित्थं तो सेणियाइआ समणा। इयणरएसुप्पत्ती, तेसिं जुत्ता ण वुत्तुं जे // 202 // तित्थस्स ठिई मिच्छा, वाससहस्साणि इक्कवीसं च। . जेणं सव्वसमासु वि, दंसणनाणाइँ जग्गंति // 203 // . 17