________________ // 72 // // 73 // // 74 // // 75 // // 76 // // 77 // ववहारो वि हु बलवं, जं छउमत्थं पि वंदई अरहा। जा होइ अणाभिण्णो, जाणतो धम्मिअं एअं वयभंगे गुरुदोसो; दुव्वारो जइ वि तह वि ववहारे। इण्हिं पि ण पडिबंधो, विवक्ख भावेण पडिआरा जह गुरुअसुहविवागं, विसं ण दुक्खावहं सपडिआरं / पावदुगंछासहियं, तह चरणं साइआरं पि इत्तु च्चिय पडिकमणं, पच्छायावाइभावओ सुद्धं / भणिअंजिणप्पवयणे, इहरा तं दव्वओ दिटुं एवं अत्थपएणं, भाविज्जंतेण होइ चरणिड्डी। आलोअणाइमित्तं, बंभाईणं तु फलवंझं एएण विआरेणं, जे सुण्णा हुँति दव्वलिंगधरा / संमुच्छिमचिट्ठाभा, तेसिं किरिया समक्खाया चरणस्स पक्खवाओ, जयणाए होइ उज्जमंताणं / विरियाणिगृहणेणं, वायामित्तेण इहरा उ . जो पुण कुणइ विलोवं, दोसलवं दंसिऊण चरणस्स। जह सज्जणस्स पिसुणो, चरणस्स ण पक्खवाई सो गच्छाणाभंगस्स य, रज्जं सुहभावरायरज्जेणं / हणियव्वं धीरेहिं, कीवत्तं णेव कायव्वं अववाएणं कत्थइ, आणाइ च्चिय पवट्ठमाणस्स। आउट्टस्स य मुणिणो, णो भंगो भावसुद्धस्स जो पुण पमायदोसो, थोवो वि हु णिच्छएण सो भंगो। सम्ममणाउट्टस्स उ, अवगरिसो संजमम्मि जओ ववहारणयाभिमयं, सेढिब्भंसं पडुच्च. भंगं तु / खिप्पेयरकालकओ, भेओ मूलुत्तरगुणेसुं // 78 // // 79 // // 80 // // 81 // // 82 // // 83 //