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________________ जिनवचोघनसारमलिम्लुचः कुसुमसायकपावकदीपकः / अहह कोपि मन:पवनो बली शुभमतिद्रुमसंततिभङ्गकृत् // 6 // चरणगोपुरभङ्गपरः स्फुरत्समयबोधतरूनपि पातयन् / भ्रमति यद्यतिमत्तमनोगजः क्व कुशलं शिवराजपथे तदा // 7 // व्रततरून्प्रगुणीकुरुते जनो दहति दुष्टमनोदहनः पुनः / ननु परिश्रम एष विशेषवान् क्व भविता सुगुणोपवनोदयः // 8 // अनिगृहीतमना विदधत्परं न वपुषा वचसा च शुभक्रियाम् / गुणमुपैति विराधनयाऽनया बत दुरन्तभवभ्रममञ्चति अनिगृहीतमनाः कुविकल्पतो नरकमृच्छति तन्दुलमत्स्यवत् / इयमभक्षणजा तदजीर्णताऽनुपनतार्थविकल्पकदर्थना // 10 // मनसि लोलतरे विपरीततां वचननेत्रकरेगितगोपना / व्रजति धूर्ततया ह्यनयाखिलं निबिडदम्भपरैर्मुषितं जगत् // 11 // मनस एव ततः परिशोधनं नियमतो विदधीत महामतिः / इदमभेषजसंवननं मुनेः परपुमर्थरतस्य शिवश्रियः // 12 // प्रवचनाब्जविलासरविप्रभा प्रशमनीरतरङ्गतरङ्गिणी / हृदयशुद्धिरुदीर्णमदज्वरप्रसरनाशविधौ परमौषधम् // 13 // अनुभवामृतकुण्डमनुत्तरव्रतमरालविलासपयोजिनी / सकलकर्मकलङ्कविनाशिनी मनस एव हि शुद्धिरुदाहृता // 14 // प्रथमतो व्यवहारनयस्थितोऽशुभविकल्पनिवृत्तिपरो भवेत् / शुभविकल्पमयव्रतसेवया हरति कण्टक एव हि कण्टकम् // 15 // विषमधीत्य पदानि शनैः शनैर्हरति मन्त्रपदावधि मान्त्रिकः / भवति: देशनिवृत्तिरपि स्फुटा गुणकरी प्रथमं मनसस्तथा // 16 // च्युतमसद्विषयव्यवसायतो लगति यत्र मनोऽधिकसौष्ठवात् / प्रतिकृतिः पदमात्मवदेव वा तदवलम्बनमत्र शुभं मतम् // 17 // 75
SR No.004454
Book TitleShastra Sandesh Mala Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2005
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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