________________ // 10 // स // 11 // // 13 // // 14 // // 15 // न लोकं नापि सूत्रं नो गुरुवाचमपेक्षते / अनध्यवसितं किञ्चित्कुरुते चौघसंज्ञया शुद्धस्यान्वेषणे तीर्थोच्छेदः स्यादिति वादिनाम् / लोकाचारादरश्रद्धा लोकसंज्ञेति गीयते शिक्षितादिपदोपेतमप्यावश्यकमुच्यते / द्रव्यतो भावनिर्मुक्तमशुद्धस्य तु का कथा तीर्थोच्छेदभिया हन्ताविशुद्धस्यैव चादरे / सूत्रक्रियाविलोप: स्याद् गतानुगतिकत्वतः धर्मोद्यतेन कर्त्तव्यं कृतं बहुभिरेव चेत् / तदा मिथ्यादृशां धर्मो न त्याज्य: स्यात्कदाचन तस्माद् गतानुगत्या यत् क्रियते सूत्रवर्जितम् / ओघतो लोकतो वा तदननुष्ठानमेव हि अकामनिर्जराङ्गत्वं कायक्लेशादिहोदितम् / सकामनिर्जरा तु स्यात् सोपयोगप्रवृत्तितः सदनुष्ठानरागेण तद्धेतुर्मार्गगामिनाम् / एतच्च चरमावर्तेऽनाभोगादेविना भवेत् धर्मयौवनकालोऽयं भवबालदशापरा / अत्र स्यासत्क्रियारागोऽन्यत्र चासत्क्रियादरः भोगरागाद् यथा यूनो बालक्रीडाऽखिला हिये / धर्मे यूनस्तथा धर्मरागेणासत्क्रिया हिये चतुर्थं चरमावर्ते तस्माद्धर्मानुरागतः / अनुष्ठानं विनिर्दिष्टं बीजादिक्रमसंगतम् बीजं चेह जनान् दृष्ट्वा शुद्धानुष्ठानकारिणः / बहुमानप्रशंसाभ्यां चिकीर्षा शुद्धगोचरा 72 // 16 // // 17 // // 18 // // 19 // // 20 // // 21 //