________________ इयरेसु वि भंगेसु एव विवेगो तहेव खमणे वि / अविगिट्ठविगिट्ठम्मि य गणिणा गच्छस्स पुच्छाए // 96 // खणमवि मुणीण कप्पइ णेव अदिनोग्गहस्स परिभोगो / इयराऽजोगे गेज्झो अवग्गहो देवयाए वि // 97 // एवं सामायारी कहिया दसहा समासओ एसा / जिणआणाजुत्ताणं गुरुपरतंताण साहूणं // 98 // अज्झप्पज्झाणरयस्सेसा परमत्थसाहणं होइ / मग्गम्मि चेव गमणं एयगुणस्सणुवओगे वि // 99 // किं बहुणा. इह जह जह रागद्दोसा लहुं विलिज्जंति / तह तह पयट्टिअव्वं एसा आणा जिर्णिदाणं // 100 // इय संथुओ महायस जगबंधव वीर देसु मह बोहिं / तुह थोत्तेण धुव च्चिय जायइ जसविजयसंपत्ती // 101 // = // आराधकविराधकचतुर्भङ्गी // श्रुतशीलव्यपेक्षायामाराधकविराधको / प्रत्येकसमुदायाभ्यां चतुर्भङ्गीं श्रितौ श्रुतौ // 1 // द्रव्याज्ञाराधनादत्र देशाराधक इष्यते / . सामाचारी तु साधूनां तन्त्रमत्र न केवलम् // 2 // भग्नव्रतक्रियानात्तक्रियौ देशविराधको / क्रियाप्राधान्यमाश्रित्य ज्ञायते परिभाषितौ श्रुतशीलसमावेशात्सर्वाराधक इष्यते / संमील्य न पृथक् सिद्धं देशाराधकताद्वयम् // 3 // // 4 // 45