________________ ___ = एवं ह्येकान्तबुद्धिः स्यात्सा च सम्यक्त्वघातिनी / विभज्य वादिनो युक्ता कथायामधिकारिता // 30 // विधिना कथयन् धर्मं हीनोऽपि श्रुतदीपनात् / वरं न तु क्रियास्थोऽपि मूढो धर्माध्वतस्करः // 31 // इत्थं व्युत्पत्तिमात्रायां कथयन् पण्डितः कथाम् / स्वसामर्थ्यानुसारेण परमानन्दमश्नुते // 32 // __ योगलक्षणद्वात्रिंशिका // 10 // मोक्षेण योज़नादेव योगो ह्यत्र निरुच्यते / लक्षणं तेन तन्मुख्यहेतुव्यापारतास्य तु // 1 // मुख्यत्वं चान्तरङ्गत्वात् फलाक्षेपाच्च दर्शितम् / चरमे पुद्गलावर्ते यत एतस्य संभवः // 2 // न सन्मार्गाभिमुख्यं स्यादावर्तेषु परेषु तु / . मिथ्यात्वच्छन्नबुद्धीनां दिङ्मूढानामिवाङ्गिनाम् // 3 // तदा भवाभिनन्दी स्यात्संज्ञाविष्कम्भणं विना / धर्मकृत् कश्चिदेवाङ्गी लोकपङ्क्तिकृतादर: क्षुद्रो लाभरतिर्दीनो मत्सरी भयवान् शठः / अज्ञो भवाभिनन्दी स्यान्निष्फलारम्भसंगतः // 5 // लोकाराधनहेतोर्या मलिनेनान्तरात्मना / / क्रियते सत्क्रिया सा च लोकपक्तिंरुदाहृता // 6 // महत्यल्पत्वबोधेन विपरीतफलावहा / भवाभिनन्दिनो लोकपङ्क्त्या धर्मक्रिया मता // 7 // . धर्मार्थं सा शुभायापि धर्मस्तु न तदर्थिनः / क्लेशोऽपीष्टो धनार्थं हि क्लेशार्थं जातु नो धनम् // 4 // // 8 // ૧પ૦