________________ // 36 // // 37 // // 38 // // 39 // // 40 // // 41 // नयभङ्गप्रमाणाढ्यां हेतूदाहरणान्विताम् / आज्ञां ध्यायेंज्जिनेन्द्राणामप्रामाण्याकलङ्किताम् रागद्वेषकषायादिपीडितानां जनुष्मताम् / ऐहिकामुष्मिकांस्तांस्तान्नानापायान्विचिन्तयेत् ध्यायेत्कर्मविपाकं च तं तं योगानुभावजम् / प्रकृत्यादिचतुर्भेदं शुभाशुभविभागतः उत्पादस्थितिभङ्गादिपर्यायैर्लक्षणैः पृथक् / भेदैर्नामादिभिर्लोकसंस्थानं चिन्तयेद् भृतम् चिन्तयेत्तत्र कर्तारं भोक्तारं निजकर्मणाम् / अरूपमव्ययं जीवमुपयोगस्वलक्षणम् तत्कर्मजनितं जन्मजरामरणवारिणा / पूर्णं मोहमहावर्त्तकामौर्वानलभीषणम् आशामहानिलापूर्णकषायकलशोच्छलत् / . असद्विकल्पकल्लोलचक्रं दधतमुद्धतम् . हृदि स्रोतसिकावेलासंपातदुरतिक्रमम् / प्रार्थनावल्लिसंतानं दुष्पूरविषयोदरम् अज्ञानदुर्दिनं व्यापद्विद्युत्पातोद्भवद्भयम् / कदाग्रहकुवातेन हृदयोत्कम्पकारिणम् . विविधव्याधिसंबन्धमत्स्यकच्छपसंकुलम् / चिन्तयेच्च भवाम्भोधि चलद्दोषाद्रिदुर्गमम् तस्य संतरणोपायं सम्यक्त्वदृढबन्धनम् / बहुशीलाङ्गफलकं ज्ञाननिर्यामकान्वितम् संवरास्ताश्रवच्छिद्रं गुप्तिगुप्तं समन्ततः / आचारमण्डपोद्दीप्तापवादोत्सर्गभूद्वयम् 101 // 42 // // 43 // // 44 // // 45 // // 46 // // 47 //