________________ // 65 // // 66 // // 6 // // ज्ञानाष्टकम् // 9 // विषयप्रतिभासं चात्मपरिणतिमत्तथा / तत्त्वसंवेदनं चैव ज्ञानमाहुमहर्षयः विषकण्टकरत्नादौ बालादिप्रतिभासवत् / विषयप्रतिभासं स्यात्तदूधेयत्वाद्यवेदकम् निरपेक्षप्रवृत्त्यादिलिङ्गमेतदुदाहृतम् / अज्ञानावरणापायं महापायनिबन्धनम् पातादिपरतन्त्रस्य तदोषादावसंशयम् / . अनर्थाद्याप्तियुक्तं चात्मपरिणतिमन्मतम् तथाविधप्रवृत्त्यादिव्यङ्ग्यं सदनुबन्धि च / ज्ञानावरणहासोत्थं प्रायो वैराग्यकारणम् स्वस्थवृत्तेः प्रशान्तस्य तद्धेयत्वादिनिश्चयम् / तत्त्वसंवेदनं सम्यक् यथाशक्ति फलप्रदम् न्याय्यादौ शुद्धवृत्त्यादिगम्यमेतत्प्रकीर्तितम् / सज्ज्ञानावरणापायं महोदयनिबन्धनम् / एतस्मिन् सततं यत्नः कुग्रहत्यागतो भृशम् / मार्गश्रद्धादिभावेन कार्य आगमतत्परैः // 68 // // 69 // // 70 // // 71 // // 72 // // वैराग्याष्टकम् // 10 // आर्तध्यानाख्यमेकं स्यान्मोहगर्भ तथापरम् / सज्ज्ञानसंगतं चेति वैराग्यं त्रिविधं स्मृतम् इष्टेतरवियोगादिनिमित्तं प्रायशो हि तत् / यथाशक्त्यपि हेयादावप्रवृत्त्यादिवर्जितम् // 73 // // 74 / / 08