________________ // 22 // = . अहिंसा सत्यमस्तेयं ब्रह्मचर्यमसङ्गता। गुरुभक्तिस्तपो ज्ञानं सत्पुष्पाणि प्रचक्षते एभिर्देवाधिदेवाय बहुमानपुर:सरा। दीयते पालनाद्या तु सा वै शुद्धत्युदाहृता प्रशस्तो ह्यनया भावस्ततः कर्मक्षयो ध्रुवः / कर्मक्षयाच्च निर्वाणमत एषा सतां मता = // 23 // =. // 24 // // अग्निकारिकाष्टकम् // 4 // कर्मेन्धनं समाश्रित्य दृढा सद्भावनाहुतिः / . .. धर्मध्यानाग्निना कार्या दीक्षितेनाग्निकारिका . // 25 // दीक्षा मोक्षार्थमाख्याता ज्ञानध्यानफलं स च / शास्त्र उक्तो यतः सूत्रं शिवधर्मोत्तरे ह्यदः // 26 // पूजया विपुलं राज्यमग्निकार्येण संपदः / तपः पापविशुद्ध्यर्थं ज्ञानं ध्यानं च मुक्तिदम् // 27 // पापं च राज्यसंपत्सु संभवत्यनघं ततः / न तद्धेतोरुपादानमिति सम्यग्विचिन्त्यताम् // 28 // विशुद्धिश्चास्य तपसा न तु दानादिनैव यत् / तदियं नान्यथा युक्ता तथा चोक्तं महात्मना // 29 // धर्मार्थं यस्य वित्तेहा तस्यानीहा गरीयसी / प्रक्षालनाद्धि पङ्कस्य दूरादस्पर्शनं वरम् // 30 // मोक्षाध्वसेवया चैताः प्राय: शुभतरा भुवि / जायन्ते ह्यनपायिन्य इयं सच्छास्त्रसंस्थितिः . // 31 // इष्टापूर्तं न मोक्षाङ्गं सकामस्योपवर्णितम् / अकामस्य पुनर्योक्ता सैव न्याय्याग्निकारिका . // 32 // 74