________________ // 4 // गोसे भणिओ य विही, इय अणवरयं तु चिट्ठमाणस्स / भवविरहबीयभूओ, जायइ चारित्तपरिणामो // 120 // ॥नानाचित्तप्रकरणम् // नमिऊण जिणं जयजीवबंधवं धम्मकणयकसवढें / वुच्छं धम्ममईणं धम्मविसेसं समासेणं / // 1 // नाणाचित्ते लोए नाणापासंडिमोहियमईए / दुक्खं निव्वाहेउं सव्वन्नुवएसिओ धम्मो // 2 // वत्तणुवत्तपवत्तो बहुकविको उ सुबद्धसन्नाहो / अविमग्गियसब्भावो लोओ अलिओ य बलिओ य // 3 // धम्मो धम्मु त्ति जगम्मि घोसए बहुविहेहिं रूवेहिं / सो भे परिक्खियव्वो कणगं व तिहिं परिक्खाहिं . न य तस्स लक्खणं पंडुरं च नीलं च लोहियं वावि / एक्को सि नवरि भेओ जमहिंसा सव्वजीवेसु / // 5 // लटुंति सुंदरं ति य सव्वो घोसेइ अप्पणो पणियं / कइएण वि घित्तव्वं सुंदर ! सुपरिक्खिउं काउं णिच्छंति विक्किणंता मंगुलपणियं पि मंगुलं वुत्तुं / सव्वे सुंदररागं उच्चयरागं च घोसंति // 7 // तो भे भणामि सव्वे न हु घोसणविम्हिएहि होयव्वं / धम्मो परिक्खियव्वो तिगरणसुद्धो अहिंसाए हेरनिओ हिरन्नं वाहिं विज्जो मणिं च मणियारो। धाउं च धाउवाई जाणइ धम्मट्ठिओ धम्म धम्मं जणो विमग्गइ मग्गंतो वि य न जाणइ विसुद्धि / धम्मो जिणेहिं भणिओ जत्थ दया सव्वजीवाणं // 10 // // 8 // 45