________________ // 491 // // 492 // // 493 // // 494 // // 495 // // 496 // तत्स्वभावत्वतो यस्मादस्य तात्त्विक एव हि। क्लिष्टस्तदन्यसंयोगात्परिणामो भवावहः स योगाभ्यासजे यो यत्तत्क्षयोपशमादितः / योगोऽपि मुख्य एवेह शुद्ध्यवस्थास्वलक्षणः ततस्तथा तु साध्वेव तदवस्थान्तरं परम् / / तदेवं तात्त्विकी मुक्तिः स्यात्तदन्यवियोगतः अत एव च निर्दिष्टं नामास्यास्तत्त्ववेदिभिः / वियोगोऽविद्यया बुद्धिः कृत्स्नकर्मक्षयंस्तथा शैलेशीसंज्ञिताच्चेह समाधिरुपजायते / / कृत्स्नकर्मक्षयः सोऽयं गीयते वृत्तिसंक्षयः तथा तथा क्रियाविष्टः समाधिरभिधीयते / निष्ठाप्राप्तस्तु योगज्ञैर्मुक्तिरेष उदाहृतः संयोगयोग्यताऽभावो यदिहात्मतदन्ययोः / कृतो न जातु संयोगो भूयो नैवं भवस्ततः योग्यतात्मस्वभावस्तत्कथमस्या निवर्तनम् / तत्तत्स्वभावतायोगादेतल्लेशेन दर्शितम् स्वनिवृत्तिः स्वभावश्चेदेवमस्य प्रसज्यते। अस्त्वेवमपि नो दोषः कश्चिदत्र विभाव्यते परिणामित्व एवैतत्सम्यगस्योपपद्यते / आत्माभावेऽन्यथा तु स्यादात्मसत्तेत्यदश्च न स्वभावविनिवृत्तिश्च स्थितस्यापीह दृश्यते / घटादेर्नवतात्यागे तथा तद्भावसिद्धितः नवताया न चात्यागस्तथा नाऽतत्स्वभावता। घटादेर्न न तद्भाव इत्यत्रानुभवः प्रमा // 497 // // 498 // // 499 // // 500 // // 501 // // 502 // 254