________________ // 275 // // 276 // // 277 // .. // 278 // // 279 // // 280 // सांसिद्धिकमिदं ज्ञेयं सम्यक्चित्रं च देहिनाम् / तथा कालादिभेदेन बीजसिद्धयादिभावतः सर्वथा योग्यताभेदे तदभावोऽन्यथा भवेत् / निमित्तानामपि प्राप्तिस्तुल्या यत्तनियोगतः अन्यथा योग्यताभेदः सर्वथा नोपपद्यते / निमित्तोपनिपातोऽपि यत्तदाक्षेपतो ध्रुवम् योग्यता चेह विज्ञेया बीजसिद्ध्याद्यपेक्षया / आत्मनः सहजा चित्रा तथाभव्यत्वमित्यंतः वरबोधेरपि न्यायात्सिद्धि! हेतुभेदतः / / फलभेदो यतो युक्तस्तथा व्यवहितादपि तथा च भिन्ने दुर्भेदे कर्मग्रन्थिमहाबले। . तीक्ष्णेन भाववज्रेण बहुसङ्क्लेशकारिणि आनन्दो जायतेऽत्यन्तं तात्त्विकोऽस्य महात्मनः / सव्याध्यभिभवे यद्वद्व्याधितस्य महौषधात् भेदोऽपि चास्य विज्ञेयो न भूयो भवनं तथा / तीव्रसङ्क्लेशविगमात्सदा निःश्रेयसावहः जात्यन्धस्य यथा पुंसश्चक्षुर्लाभे शुभोदये / सद्दर्शनं तथैवास्य ग्रन्थिभेदेऽपरे जगुः अनेन भवनैर्गुण्यं सम्यग्वीक्ष्य महाशयः / तथाभव्यत्वयोगेन विचित्रं चिन्तयत्यसौ मोहान्धकारगहने संसारे दुःखिता बत। सत्त्वाः परिभ्रमन्त्युच्चैः सत्यस्मिन्धर्मतेजसि अहमेतानतः कृच्छ्राद्यथायोगं कथञ्चन।। अनेनोत्तारयामीति वरबोधिसमन्वितः // 281 // // 282 // // 283 // // 284 // - // 285 // // 286 // 235