________________ // 12 // // 13 // // 14 // // 15 // // 16 // // 17 // एतत्त्रयमनाश्रित्य विशेषेणैतदुद्भवाः / योगदृष्टय उच्यन्त अष्टौ सामान्यतस्तु ताः मित्रा तारा बला दीप्रा स्थिरा कान्ता प्रभा परा / नामानि योगदृष्टीनां लक्षणं च निबोधत समेघाऽमेघरात्र्यादौ सग्रहाद्यर्भकादिवत् / ओघदृष्टिरिह ज्ञेया मिथ्यादृष्टीतराश्रया तृणगोमयकाष्ठाग्निकणदीपप्रभोपमा / रत्नतारार्कचन्द्राभा सद्दष्टेर्दृष्टिरष्टधा यमादियोगयुक्तानां खेदादिपरिहारतः / अद्वेषादिगुणस्थानं क्रमेणैषा सतां मता सच्छ्रद्धासंगतो बोधो दृष्टिरित्यभिधीयते / असत्प्रवृत्तिव्याघातात्सत्प्रवृत्तिपदावहः . इयं चावरणापायभेदादष्टविधा स्मृता / सामान्येन विशेषास्तु भूयांसः सूक्ष्मभेदतः प्रतिपातयुताश्चाद्याश्चतस्रो नोत्तरास्तथा / ' सापाया अपि चैतास्ताः प्रतिपातेन नेतराः प्रयाणभङ्गाभावेन निशि स्वापसमः पुनः / विघातो दिव्यभवतश्चरणस्योपजायते मित्रायां दर्शनं मन्दं यम इच्छादिकस्तथा। . अखेदो देवकार्यादावद्वेषश्चापरत्र तु : करोति योगबीजानामुपादानमिह स्थितः / अवन्ध्यमोक्षहेतूनामिति योगविदो विदुः जिनेषु कुशलं चित्तं तन्नमस्कार एव च / प्रणामादि च संशुद्धं योगबीजमनुत्तमम् . 185 // 18 // // 19 // // 20 // // 21 // // 22 // // 23 //