________________ 13 - गुरुविनयः गुरुविनयः स्वाध्यायो योगाभ्यासः परार्थकरणं च / / . . इतिकर्तव्यतया सह विज्ञेया साधुसच्चेष्टा .. // 193 // औचित्याद् गुरुवृत्तिर्बहुमानस्तत्कृतज्ञताचित्तम् / आज्ञायोगस्तत्सत्यकरणता चेति गुरुविनयः // 194 // यत्तु खलु वाचनादेशसेवनमत्र भवति विधिपूर्वम् / धर्मकथान्तं क्रमशस्तत्स्वाध्यायो विनिर्दिष्टः // 195 // स्थानोर्णालम्बनतदन्ययोगपरिभावनं सम्यक्। परतत्त्वयोजनमलं योगाभ्यास इति तत्त्वविदः // 196 // विहितानुष्ठानपरस्य तत्त्वतो योगशुद्धिसचिवस्य / भिक्षाटनादि सर्वं परार्थकरणं यते यम् // 197 // सर्वत्रानाकुलता यतिभावाव्ययपरा समासेन / कालादिग्रहणविधौ क्रियेतिकर्तव्यता भवति // 198 // इति चेष्टावत उच्चैविशुद्धभावस्य सद्यतेः क्षिप्रम् / मैत्रीकरुणामुदितोपेक्षाः किल सिद्धिमुपयान्ति // 199 // एताश्चतुर्विधाः खलु भवन्ति सामान्यतश्चतस्रोऽपि / एतद्भावपरिणतावन्ते मुक्तिर्न तत्रैताः . // 20 // उपकारिस्वजनेतरसामान्यगता चतुर्विधा मैत्री / मोहाऽसुखसंवेगाऽन्यहितयुता चैव करुणेति // 201 // सुखमात्रे सद्धेतावनुबन्धयुते परे च मुदिता तु / करुणानुबन्धनिर्वेदतत्त्वसारा ह्युपेक्षेति // 202 // एता: खल्वभ्यासात् क्रमेण वचनानुसारिणां पुंसाम् / सवृत्तानां सततं श्राद्धानां परिणमन्त्युच्चैः . . // 203 // 114