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________________ गुरुपरिओसगएणं गुरूभत्तीए तहेव विणएणं / इच्छिअसुत्तत्थाणं खिप्पं पारं समुवयंति // 1008 // वक्खाणसमत्तीए नोगं काऊण काइआईणं / वंदंति तओ जिलृ अण्णे पुव्व च्चिअ भणंति // 1009 // चोएइ जई जिट्ठो कहिचि सुत्तत्थधारणाविकलो। वक्खाणलद्धिहीणो निरत्थयं वंदणं तम्मि // 1010 // अह वयपरिआएहिं लहुओ वि हु भासगो इहं जिट्ठो। रायणिअवंदणे पुण तस्स वि आसायणा भंते ! // 1011 // जइऽवि वयमाइएहि लहुओ सुत्तत्थधारणापडुओ। वक्खाणलद्धिमं जो सो च्चिअ इह धिप्पई जिट्ठो // 1012 / / आसायणा वि नेवं पड्डच्च जिणवयणभासगं जम्हा।। वंदणगं रायणिओ तेण गुणेणं पि सो चेव // 1013 // ण वयो एत्थ पमाणं ण य परिआओ उ निच्छयणएणं / ववहारओ उ जुज्जइ उभयणयमयं पुण पमाणं // 1014 / / निच्छयओ दुन्नेअं को भावे कम्मि वट्टई समणो? / ववहारओ उ कीरइ जो पुव्वठिओ चरित्तम्मि // 1015 // ववहारो वि हु बलवं जं छउमत्थं पि वंदई अरहा / जा होइ अणाभिन्नो जाणते धम्मयं एवं // 1016 // एत्थ उ जिणवयणाओ सुत्तासायणबहुत्तदोसोउ। भासंतजिट्ठगस्स उ कायव्वं होइ किइकम्म // 1017 // क्वखाणेअव्वं पुण जिणवयणं णंदिमाइ सुपसत्थं / जं जम्मि जम्मि काले जावइअं भावसंजुत्तं // 1018 // सिस्से वा णाऊणं जोग्गयरे केइ दिट्ठिवायाई / तत्तो वा निज्जूढं सेसं ते चेव विअरंति // 1019 // 85
SR No.004452
Book TitleShastra Sandesh Mala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2005
Total Pages310
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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