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________________ भगवंते तप्पच्चयकारि (य) गंभीरसारभणिईहिं। संवेगकरं निअमा वक्खाणं होइ कायव्वं . . // 996 // होंति उ विवज्जयम्मी दोसा एत्थं विवज्जयादेव / ता उवसंपन्नाणं एवं चिअ बुद्धिमं कुज्जा // 997 // कालो वि वितहकरणे णेगंतेणेह होइ सरणं तु। णहि एअम्मि वि काले विसाइ सुहयं अमंतजुअं // 998 // . एत्थं च वितहकरणं नेअं आउट्टिआउ सव्वं पि। पावं विसाइतुलं आणाजोगो अ मंतसमो. // 999 // ता एअम्मि वि काले आणाकरणे अमूढलक्खेहि। सत्ताए जइअव्व एत्थ विहाँ हदि एसो अ // 1000 // मज्जण निसिज्ज अक्खा किइकम्मुस्सग्ग वंदणं जितु। . भासंतो होइ जिट्ठो न उ पज्जाएण तो वंदे // 1001 // ठाणं पमज्जिऊणं दोन्नि निसिज्जाउ होंति कायव्वा / एक्का गुरुणो भणिआ बीआ पुण होइ अक्खाणं // 1002 // दो चेव मत्तगाइं खेले काइअ सदोसगस्सुचिए। एवंविहो वि णिच्चं वक्खाणिज्ज त्ति भावत्थो // 1003 // जावइआ उ सुणिती सव्वे वि हु ते तओ अ उवउत्ता। पडिलेहिऊण पोत्तिं जुगवं वंदंति भावणया // 1004 // सव्वे वि उ उस्सग्गं करिति सव्वे पुणो वि वंदंति। नासने नाइदूरे गुरुवयणपडिच्छगा होंति // 1005 // निद्दाविगहापरिवज्जिएहिं गुत्तेहिं पंजलिउडेहिं / भत्तिबहुमाणपुव्वं उवउत्तेहिं सुणेअव्वं // 1006 // अहिकंखंतेहिं सुभासिआइं वयणाई अत्थमहुराई। . विम्हिअमुहेहिं हरिसागएहिं हरिसं जणंतेहिं . // 1007 / / 4
SR No.004452
Book TitleShastra Sandesh Mala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2005
Total Pages310
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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