________________ // 936 // // 937 // // 938 // // 939 // // 940 // // 941 // किंपि अ अहिअंपि इमं णालंबणमो गुणेहिं गरुआणं / एत्थं कुसाइतुल्लं अइप्पसंगा मुसावाओ / अणुओगी लोगाणं किल संसयणासओ दढं होइ / तं अल्लिअंति तो ते पायं कुसलाभिगमहेउं सो थेवओ वराओ गंभीरपयत्थभणिइमग्गम्मि। एगंतेणाकुसलो किं तेसि कहेइ सुहुमपर्य ? जं किंचिभासगंतं दठूण बुहाण होअवण्ण त्ति / पवयणधारो उ तम्मि इअ पवयणखिंसमो णेआ सीसाण कुणइ कह सो तहाविहो हंदि नाणमाईणं / अहिआहिअसंपत्तिं संसारुच्छेअणि परमं? अप्पत्तणओ पायं हेआइविवेगविरहओ वा वि / न हु अन्नओ वि सो तं कुणइ अ.मिच्छाभिमाणाओ तो ते वि तहाभूआ कालेण वि होंति नियमओ चेव। सेसाण वि गुणहाणी इअ संताणेण विन्नेआ नाणाईणमभावे होइ विसिट्ठाणऽणत्थगं सव्वं / सिरतुंडमुंडणाइ वि विवज्जयाओ जहऽन्नेसिं ण य समइविगप्पेणं जहा तहा कयमिणं फलं देइ। अवि आगमाणुवाया रोगचिगिच्छाविहाणं व इय दव्वलिंगमित्तं पायमगीआओं जं अर्णत्थफलं / जायइ ता विण्णेओ तित्थुच्छेओ अ भावेणं कालोचिअसुत्तत्थे तम्हा सुविणिच्छियस्स अणुओगो / नियमाऽणुजाणिअव्वो न सवणओ चेव जह भणिअं जह जह बहुस्सुओ सम्मओ अ सीसगणसंपरिवुडो अ। अविणिच्छिओ अ समए तह तह सिद्धंतपडिणीओ // 942 // // 943 // // 944 / / // 945 // // 946 // // 947 // C .