________________ सव्वण्णूहि पणीयं सो उत्तममइसएण गंभीरं / तुच्छकहणाए हिट्ठा सेसाण वि कुणइ सिद्धतं . // 948 // अविणिच्छिओ ण सम्मं, उक्सग्गववायजाणगो होइ। अविसयपओगओ सिं, सो सपरविणासओ नियमा // 949 // ता तस्सेव हिअट्ठा तस्सीसाणमणुमोअगाणं च। तह अप्पणो अ धीरो जोगस्सऽणुजाणई एवं // 950 // तिहिजोगम्मि पसत्थे गहिए काले निवेइए चेव / ओसरणमह णिसिज्जारयणं संघट्टणं चेव. // 951 // तत्तो पवेइआए उवविसइ गुरू उ णिअनिसिज्जाए। पुरओ अ ठाइ सीसो सम्ममहाजायउवकरणो // 952 // पेहिति तओ पोत्ति तीएं अ ससीसंगं पुणो कायं / बारस वंदण संदिस सज्झायं पट्ठवामो त्ति पट्ठवसु अणुण्णाए तत्तो दुअगा वि पट्टवेइ त्ति / तत्तो गुरू निसीअइ इअरो वि णिवेअइ तयं ति . // 954 // तत्तो वि दो वि विहिणा अणुओगं पट्टविति उवउत्ता। वंदित्तु तओ सीसो अणुजाणावेइ अणुओगो // 955 // अभिमंतिऊण अक्खे वंदइ देवे तओ गुरू विहिणा। ठिअ एव नमोक्कार कड्डइ नंदि च संपुनं // 956 // इअरो वि ठिओ संतो सुणेइ पोत्तीइ ठइअमुहकमलो। संविग्गो उवउत्तो अच्चंतं सुद्धपरिणामो // 957 // तो कड्डिऊण नंदि भणइ गुरू अह इमस्स साहुस्स। अणुओगं अणुजाणे खमासमणाण हत्थेणं // 958 // दव्वगुणपज्जवेहि अ एस अणुनाउ वंदिउं सीसो। संदिसह किं भणामो? इच्चाइ जहेव सामाइए / // 959 //