SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ // 120 // // 121 // // 122 // // 123 // / / 124 // // 125 // जह वाहिओ अ किरियं पवज्जिउं सेवई अपत्थं तु / अपवण्णगाउ अहियं सिग्धं च स पावइ विणासं एमेव भावकिरिअं पवज्जिङ कम्मवाहिखयहेऊ। पच्छा अपत्थसेवी अहियं कम्मं समज्जिणइ अब्भुवगयं पि संतं पुणो परिक्खिज्ज पवयणविहीए / छम्मासं जाऽऽसज्ज व पत्तं अद्धाएँ अप्पबहुं सोभणदिणम्मि विहिणा दिज्जा आलावगेण सुविसुद्धं / सामाइआइसुत्तं पत्तं नाऊण जं जोग्गं तत्तो अ जहाविहवं पूअं स करिज्ज वीयरागाणं / साहूण य उवउत्तो एअं च विहिं गुरू कुणइ चिइवंदण रयहरणं अट्टा सामाइयस्स उस्सग्गो।. सामाइयतिगकड्ढण पयाहिणं चेव तिक्खुत्तो सेहमिह वामपासे ठवित्तुं तो चेइए पवंदंति / . साहूहि समं गुरवो थुइवुड्डी अप्पणा चेव . पुरओ उ ठंति गुरवो सेसा वि जहक्कमं तु सट्ठाणे / अक्खलिआई कमेणं विवज्जए होइ अविही उ खलियमिलियवाइद्धं हीणं अच्चक्खराइदोसजुअं। वंदंताणं नेआऽसामायारि ति सुत्ताणा वंदिय पुणुट्ठिआणं गुरूण तो वंदणं समं दाउं / सेंहो भणाइ इच्छाकारेणं पव्वयावेह इच्छामो त्ति भणित्ता उठेउं कड्डिऊण मंगलयं / अप्पेइ: रओहरणं जिणपन्नत्तं गुरू लिंगं पुव्वाभिमुहो उत्तरमुहो व देज्जाऽहवा पडिच्छिज्जा। जाए जिणादओ वा दिसाएँ जिणचेइआई वा 11 // 126 / ' // 127 // 128 // 129 / / // 130 / // 131 //
SR No.004452
Book TitleShastra Sandesh Mala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2005
Total Pages310
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy