________________ जं सो सया वि पायं मणेण संविग्गपक्खिओ चेव। . इअरो उ विरइरयणं न लहइ चरमे वि कालम्मि // 1680 // संविग्गपक्खिओ पुण अण्णत्थ पयट्टिओ वि काएणं / धम्मे चिअ तल्लिच्छो दढरतित्थि व्व पुरिसम्मि // 1681 // तत्तो च्चिअ भावाओ णिमित्तभुअम्मि चरमकालम्मि। उक्करिसविसेसेणं कोई विरई पि पावेइ // 1682 / / जो पुण किलिट्ठचित्तो णिरविक्खोऽणत्थदंडपडिबद्धो / लिंगोवघायकारी ण लहइ सो चरमकाले वि // 1683 / / चोएइ कहं समणो किलिट्ठचित्ताइदोसवं होइ। गुरुकम्मपरिणईओ पायं तह दव्वसमणो अ // 1684 // गुरुकम्मओ पमाओ सो खलु पावो जओ तओऽणेगे। चोद्दसपुव्वधरा वि हु अणंतकाए परिवसंति // 1685 // दुक्खं लब्भइ नाणं नाणं लभ्रूण भावणा दुक्खं / भाविअमईवि जीवो विसएसु विरज्जई दुक्खं // 1686 // अन्ने उ पढमगं चिअ चरित्तमोहक्खओवसमहीणा / पव्वइआ ण लहंती पच्छा वि चरित्तपरिणामं . // 1687 / / मिच्छद्दिट्ठीआ वि हुं केई इह होंति दव्वलिंगधरा / ता तेसिं कह ण हुंती किलिट्ठचित्ताइआ दोसा // 1688 // एत्थ य आहारो खलु उवलक्खणमेव होंइ णायव्वो। वोसिरइ तओ सव्वं उवउत्तो भावसल्लं पि // 1689 // अण्णंपिव अप्पाणं संवेगाइसयओ चरमकाले / मपणइ विसुद्धभावो जो सो आराहओ भणिओ // 1690 // सव्वत्थापडिबद्धो मज्झत्थो जीविए अ मरणे अ। चरणपरिणामजुत्तो जो सो आराहओ भणिओ // 1691 // . 141