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________________ किंतु असंखिज्जाइं संजमठाणाई जेण चरणे वि। भणियाई जाइभेया तेण न दोसो इहं कोइ // 1668 // एआण विसेसेणं तच्चाओ तेण होइ कायव्वो। पुव्विं तु भाविआण वि पच्छायावाइजोएणं // 1669 / / कयमित्थ पसंगेणं पगयं वोच्छामि सव्वनयसुद्धं / भत्तपरिण्णाए खलु विहाणसेसं समासेणं // 1670 / / वियडण अब्भुट्ठाणं उचिअं संलेहणं च काऊणं / पच्चक्खइ आहारं तिविहं च चउव्विहं वा वि // 1671 // उव्वत्तइ परिअत्तइ सयमण्णेणावि कारवइ किंचि। .... जत्थऽसमत्थो नवरं समाहिजणगं अपडिबद्धो // 1672 / / मेत्तादी सत्ताइसु जिणिंदवयणेण तह य अच्चत्थं / भावेइ तिव्वभावो परमं संवेगमावण्णो // 1673 // सुहझाणाओ धम्मो तं देहसमाहिसंभवं पायं / ता धम्मापीडाए देहसमाहिम्मि जइअव्वं .. // 1674 // इहरा छेवढम्मी संघयणे थिरधिईएँ रहिअस्स। . देहस्सऽसमाहीए कत्तो सुहझाणभावो त्ति? // 1675 // तयभावम्मि अ असुहा जायइ लेसा वि तस्स णियमेणं / तत्तो अ परभवम्मि अ तल्लेसेसुं तु उववाओ // 1676 // तम्हा उ सुहं झाणं पच्चक्खाणिस्स सव्वजत्तेणं / संपाडेअव्वं खलु गीअत्थेणं सुआणाए // 1677 // सो च्चिअ अप्पडिबद्धो दुल्लहलंभस्स विरइभावस्स / अप्परिवडणत्थं चिअंतं तं चिटुं करावेइ // 1678 // तह वि तया अदीणो जिणवर वयणम्मि जायबहुमाणो / संसाराओ विरत्तो जिणेहिं आराहओ भणिओ // 1679 / / 140
SR No.004452
Book TitleShastra Sandesh Mala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2005
Total Pages310
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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