________________ गिहिलिंगं पि न एतं एगंतेणं तदन्नहाधरणे / होंति य कहंचि नियमा करचरणादी वि गिहिलिंगं // 1068 // तेसि परिच्चागातो देहाभावे कहं नु परलोगो ? / णणु वत्थस्स वि चाए तणगहणादीहि तुल्लमिणं // 1069 // गंथो वि होइ दुविहो दव्वे भावे य दव्वगंथो य / दुपयचउप्पयअपयादिगो तु.णेओ अणेगविहो // 1070 // अट्ठविहं पि य कम्मं मिच्छत्ताविरतिदुट्ठजोगा य / एसो य भावगंथो भणितो तेलोक्कदंसीहि // 1071 // जो णिग्गतो इमाओ सम्मं दुविहातो गंथजालाओ। ... सो निच्छयनिग्गंथो निग्गच्छंतो य ववहारे // 1072 / / सो चिय निग्गच्छंतो तत्तो विहिणा कहंचि नीसरइ / सम्मत्तादिपभावा न वत्थमेत्तस्स चाएणं // 1073 // मिच्छत्ते अन्नाणे अविरतिभावे य अपरिचत्तम्मि / वत्थस्स परिच्चातो . परलोगे कं गुणं कुणइ ? .. // 1074 // नत्थि य सक्किरियाणं अबंधगं किंचि इह अणुट्ठाणं / चतितुं बहुदोसमतो कायव्वं बहुगुणं जमिह // 1075 // ता किं वत्थग्गहणं किं वा तणगहणमादि पुव्वुत्तं / बहुगुणमिह मज्झत्थो होऊणं किन्न चिंतेसि ? // 1076 // इय निदोसं वत्थं पत्तं पि हु एवमेव णातव्वं / छज्जीवणिकायवहो जतो गिहे अन्नभोगेसु // 1077 // गिहे भोगे जलमादी चलणादिपहावणे विवज्जंति / . तदकरणे चाभोगो अलाभ (भि) परियडणपलिमंथो // 1078 // एगऽन्ने आरंभा कायवहो चेव तह य परि (डि) बंधो / विरियायारपभंसण भमराहरणं च वइमेत्तं // 1079 // GO