________________ ता कि ण तं चएई ? उवगारणिरिक्खणा जहाऽऽहारं / भणितो य तओ पुब्बिं संजमजोगाण हेउ त्ति // 1056 // तम्मत्तपदाणेणं जमकज्जं तस्स तत्थ वि पवित्ती / इय अणिहुतचित्तस्स न होइ समणत्तणं समए // 1057 // संसारविरत्तमणो जोग्गो समणत्तणस्स जं भणितो / रागादिपवित्ती(ऐ) य तट्टिगमादीसु वि समाणं // 1058 // रागादिदूसियमणो किं वा न करेइ अणिहुतो जीवो ? / किं तेणं ? अणिदाणा अकज्जसिद्धि त्ति वइमेत्तं // 1059 // संजमजोगनिमित्तं परिजुन्नादीणि धारयंतस्स / कह ण परिस्सहसहणं ? जइणो सइ निम्ममत्तस्स // 1060 // नग्गत्तणमह सुत्ते भणियं ण जहोदियं तयं होइ / उवचरिए य परिस्सहसहणं पि तहाविहं पावे // 1061 // णेगंतेणाभावादण्णादीणं खुधादियाणं पि / . सहणं अणेसणिज्जादिचागतो इह वि तह चेव // 1062 // सिय पावई अणिटुं एवं इत्थीपरीसहपसंगा / णो सुत्तंतरबाधा निवारणादिह पसंगस्स // 1063 // न वि किंचिप्पडिसिद्धं अणुनायं वा (वा वि) जिणवरिंदेहिं / मोत्तुं मेहुणभावं न विर्णां सो रागदोसेहिं // 1064 // फासुगमवि असणादी ण कदाइवि अनहेह भोत्तव्वं / पायव्वं च परीसहसहणं तह इच्छमाणेणं // 1065 // गुरुणा वि न पडिकुटुं उवहिपमाणं जओ सुते भणितं / अह उ अणारिसमेयं इतरं एवन्ति किं. माणं? // 1066 // सिय चरमं चेव वयं परिग्गहो तत्थ बंधहेउ त्ति / ण उ संजमजोगंगं, वत्थं च पसाहियं पुब्बिं // 1067 //